हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
बुनती हूँ एहसासों को
शब्दों में पिरोई जाती हूँ
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
निकलती हूँ दिल से किसी के
किसी के दिल तक पहुँच जाती हूँ
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
शान्त हूँ सागर सी कभी
कभी लहरों सी उद्दण्ड हो जाती हूँ
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
दर्द छुपा है मुझमें ज़माने का
दवा का काम भी मैं कर जाती हूँ
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
छोटी हूँ कभी, कभी हूँ बड़ी
हूँ बस एहसासों की एक लड़ी
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
महसूस करके देखो मुझे
खुद से ही जुड़ा पाते हो
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
लिखी भी जाती हूँ, पढ़ी भी जाती हूँ
गहराई में उतरो तो दिल में बस जाती हूँ
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
इन्द्रधनुष के रंगों से सजी
सपनों की हंसी दुनिया में ले जाती हूँ
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
हैं शामों के मंजर मुझमें,
रातों का जिक्र भी है
तुझसे नाराजगी है थोड़ी,
थोड़ी सी फिक्र भी है
हाँ मैं एक कविता हूँ_ _ _ _
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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