थोड़ा सा दयालु बनिए - तो थोड़ा सा कठोर भी,
दयालु बस इतना की
दूसरों की गलतियाँ भूल तो जाइए,
परंतु उन्हें दोबारा वही गलती
दोहराने का मौका मत दीजिए,
और कठोर इतना की
अपनी गलतियों को कभी मत भूलिए,
बल्कि उनसे हमेशा सीखने और
उन्हें सुधारने का प्रयास कीजिए।
थोड़ा सा पारखी भी बनिए- लेकिन
दूसरों को परखने का ढोंग बंद कीजिए,
पहले खुद को परख कर देखिए।
थोड़ा सा नापतौल भी कीजिए-
लेकिन अपने मन के विचारों के साथ,
दूसरों पर अपने विचार मत थोपिए।
परिवर्तन की शुरुआत खुद से कीजिए,
तभी दूसरों को प्रभावित कर पाएंगे,
और जीवन जीने का आनन्द ले पाएंगे।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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