पर्यावरण, हम सबका है, हम सबसे है.....
हमारे साथ का इंतजार इसको कब से है.....
देता है हम सबको आवाज़
बचा लो मुझे, संभालो मुझे.....
कर दो सुरक्षा का आगाज़
वरना जीवन क्षुद्र हो जाएगा
कौन तुम्हें बरबस यह समझाएगा?
चारों तरफ यहाँ बसते हैं निष्ठुर जीव-जंतु
प्रकृति के बीच में रहना है सबको किंतु
इसकी देखभाल की नहीं कोई फिक्र
इसकी सुरक्षा का कहीं नहीं है जिक्र
तरू, पहाड़ और जंगल काटे जा रहे दिन-रात
बेज़ुबान जानवरों को उतारा जा रहा मौत के घाट
हरी-भरी घास है सबको भाती
रोग-विकारों को है दूर भगाती
फिर क्यों नहीं इसको बचाने की याद कभी आती?
हैवानियत मनुष्यता पर कैसे बोझिल है पड़ जाती?
याद रखना पर्यावरण हम सबका सुरक्षा तत्व है
इसको बचाना हम सबका परम् धर्म है
जब-जब प्रकृति पर होगा हैवानियत का वार
जब तक मनुष्यता होती रहेगी यूँ ही ज़ार-ज़ार
तब-तब रौद्र रूप पर्यावरण का लांघा जाएगा
जो दिया जाएगा प्रकृति को वही तो वापस आएगा
✍शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.