जीवन के हर कठिन प्रश्न को
यूँ हल कर दो ना तुम हमदम...............
कि अधखिली कली हम हैैं,
तुम पूर्ण फूल हो हमदम।
कली और फूल का सदियों से है
एक-दूजे से संगम,
कि तुम्हारे बिन अधूरे हम, हमारे बिन अधूरे तुम।।
कोई पीड़ा कभी भी द्वारे तक है जब आई,
देखकर संग मेें हमको थोड़ी सी वो घबराई।
"इन्हें क्या कष्ट मैं दूँ?"
सोचकर बैठी है गुमसुम,
कि अपने साथ से हमने,
लहरा दिया जीत का परचम।
जीवन के हर कठिन प्रश्न को
यूँ हल कर दो ना तुम हमदम................
तुम्हारे संग से देखो
हर डर भी मुझसे घबराए।
जहाँ तलक तुम जाओ,
वहाँ तक यह नजर जाए।
ग्रीष्म ऋतु की तपिश भी बन जाती
सुहाना सा इक मौसम,
एक-दूजे के काँधे पर जब तलक,
हमारा हाथ है हमदम।
जीवन के हर कठिन प्रश्न को
यूँ हल कर दो ना तुम हमदम..................
जीने-मरने की कसमें तो खाता,
अलहड़ सा कोई यौवन।
हमने तो देखे हैं तुम संग,
मरने के बाद के कुछ स्वप्न।
एक-दूजे से बिछुड़न भी,
नहीं भर सकती ह्रदय मेें कोई गम।
जीते जी कर दिया तब्दील,
वसंत मेें मेरा हर इक मौसम।
जीवन के हर कठिन प्रश्न को
यूँ हल कर दो ना तुम हमदम..................
अंत में कहना है चाहे,
तुमसे इक बात मेरा मन।
जीते हैं हम हकीकत में,
नहीं बाँध सकता कोई सम्मोहन।
कि कभी किसी फूल को हमने कली बनते नहीं देखा,
कि कभी किसी फूल को हमने कली बनते नहीं देखा,
किंतु कली से ही मुकम्मल होता है-2
हर फूल का जीवन।
तुम्हारे बिन अधूरे हम सही, पर हमसे पूर्ण होते तुम।
जीवन के हर कठिन प्रश्न को
यूँ हल कर दो ना तुम हमदम..................
कि अधखिली कली हम हैं,
तुम पूर्ण फूल हो हमदम।
कली और फूल का सदियों से है
एक-दूजे से संगम,
कि तुम्हारे बिन अधूरे हम, हमारे बिन अधूरे तुम।।
✍शिल्पी गोयल(स्वरचित एवं मौलिक)
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