मुकम्मल यहाँ बस एक शब्द मात्र है
असल में मुकम्मल कुछ भी नहीं है
ना हमारी जिंदगी
ना हमारी बंदगी
सबकुछ तो किसी को मिलता नहीं
रहने को अपना शहर नहीं
कहने को अपनों का साथ नहीं
हाथों में किसी का हाथ नहीं
सबकुछ पराया सा है यहाँ
हम तो फिर भी इंसान हैं
कर्म की ठोकर खाएंगे
नसीब में जो लिखा हमारे
उसे भोग कर जाएंगे
माँगने से मिल जाता सबकुछ अगर
भला कृष्ण बिना राधा रह जाती
पाकर साथ श्री राम का भी
क्या सीता माता वन में जीवन बिताती
होता नहीं आसान यहाँ कुछ भी हासिल करना
भोले की प्राप्ति हेतु आदिशक्ति को भी पड़ा तप करना
आसानी से सुलझ जाए ऐसी पहेली नहीं यह संसार
भोले को भी आदिशक्ति हेतु करना पड़ा लंबा इंतजार
किस्मत पर ना जोर किसी का
यहाँ कोई नहीं सगा किसी का
जिन्दगी की बस सच्चाई यही है
मिल जाएं जो दुआएं तुमको यहाँ
जीवन की असली कमाई यही है
चंद्रमा को भी मुकम्मलता हासिल नहीं है
उसे भी अमावस्या पर ही पूर्णता प्राप्त है
बाकि सब तो बस एक छलावा मात्र है
मुकम्मल यहाँ बस एक शब्द मात्र है
✍शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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