कहने को तो किसान को देश का अन्नदाता कहा जाता
पर उसके अपने भाग्य का अन्न जाने कहाँ चला जाता।
जो धूप-छांव की कभी परवाह ना करता
अपने ही जोते खेतों में वह पराया कहलाता।
सबकी थालियों में अन्न पहुँचाने का यह इनाम पाता
खुद ना जाने कितनी ही दफा बिना खाए सो जाता।
अपनी फसल का दाम लगाने का भी वह हक ना पाता
मूल-ब्याज का शैतान उसकी पूरी जिन्दगी निगल जाता।
नित नयी कृषि तकनीकों का आविष्कार होता
पर किसान को इसका कितना लाभ होता।
पैसों की तंगी की वजह से अपनी बेटी ब्याह ना पाता
उसी की फसल का मुनाफा कोई और व्यक्ति खाता।
वर्षा होने पर जिसका छप्पर टपक-टपक जाता
फिर भी फसल के लिए वर्षा की आस लगाता।
किसान को लिंग के आधार पर ना बाँटा जाता
किसान तो हर वो औरत और मर्द कहलाता,
जो जीते-जी अपने हिस्से का हक कभी ना पाता।
जिसका उगाया अनाज देश के हर कोने में खाया जाता
लड़े जब अपने हक के लिए तो किसी को ना सुहाता।
कहने को तो 'जय जवान,जय किसान ' के नारे देश लगाता
पर किसान को दबाने के लिए जवान का सहारा लिया जाता।
कोई पूछे ये सवाल अगर कि क्यों देश का किसान पीड़ित है कहलाता
किसानों का आत्महत्या करना इस सवाल का जवाब खुद बन जाता।
-शिल्पी गोयल
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👏👏👏👌👌👌
nice
Thank you
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