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हरिया बहुत सीदा-सादा और हँसमुख स्वभाव का किसान था। जो मिलता जितना मिलता वह हर परिस्थिति में संतुष्ट रहता था। वह बहुत खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था अपने परिवार के साथ जिसमें उसकी माँ, बीवी, दो बेटियाँ और एक बेटा मिल-जुल कर रहते थे। हरिया के पास एक छोटा सा खेत था जिसमें खेती-बाड़ी कर वह अपने परिवार की दैनिक जरूरतों को बमुश्किल पूरा कर पाता था।
एक बार हरिया बीज खरीदने के लिए शहर जाता है, इससे पहले वो कभी शहर नहीं गया था, जब तक उसके बाबूजी थे वही शहर से बीज लाने का काम करते थे।
हरिया शहर की चकाचौंध देखकर हैरान रह जाता है, वहाँ किसी को किसी से प्यार नहीं परिवार वाले सरेआम सड़क पर लड़ाई करते हैं। यह देखकर हरिया सोचता है वह कितना खुशनसीब है जो उसे इतना प्यारा परिवार मिला है सब मिल-जुल कर एक साथ रहते हैं।
हरिया जब वापिस गांव जाने के लिए गाड़ी लेता है। गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और बहुत से लोगों की जान भी चली जाती है।
हरिया खुद को खुशनसीब समझता है कि उसकी जान बच गई और वह रिफ्यूजी कैंप में कुछ दिन रहकर ठीक होने के पश्चात जब वापिस गांव के लिए निकलता है तो सोचता है कि उसका परिवार कितना खुश होगा उसे जीवित देखकर।
उधर उसका पूरा परिवार हर संभव कोशिश करता है उसे जीवित या मृत ढूंढने की और कोई खबर हाथ ना लगने पर चुप बैठ जाता है।
पहले ही गरीब किसान का परिवार और उस पर भी कमाने वाला ही ना रहे तो आप और हम सोच भी नहीं सकते कि उन पर क्या बीतती होगी।
'अम्मा आज बाबूजी साथ होते तो हमें इस तरह भूखा ना सोए देते कभी', हरिया की बड़की बेटी ने कहा।
'क्या खाक भूखा ना सोए देते, वो थे तब कौन सा हमको छप्पन भोग नसीब होइत रहा', हरिया की बीवी बोली।
'ये कैसी बातें करित हो अम्मा।'(बड़की बिटिया अपने बाबूजी से बहुत प्यार करती थी।)
'बिल्कुल सही कह रही अम्मा', हरिया का बेटा बोला।
"अरे कम से कम तुम्हारे बाबूजी की लाश ही मिल जाती तो जो सरकार ने दो लाख रुपए मुआवजे के दिए हैं मरने वालों के परिवार को, कम से कम उससे घर का खर्च ही चलता रहता।" हरिया की अम्मा बोली।
'जिंदा थे तब भी कुछ काम के ना रहे और मरन पर भी कुछ काम ना आईन।' छुटकी बिटिया बोल पड़ी।
यह सब हरिया दरवाजे पर खड़ा सुन रहा था और उसकी आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे यह सोच कर कि जिस परिवार पर उसको इतना गर्व महसूस होता था वो सब उसकी मरने की राह देख रहे थे।
उसका मन किया वो वापिस चला जाए और अपनी जान दे दे पर फिर सोचा उससे क्या लाभ होगा, ऐसा करने से परिवार वालों को तो कुछ हर्जाना मिलेगा नहीं।
आज भी जब कोई दुर्घटना होती है और सरकार सबको मुआवजा देती है तो वो खुद को बदनसीब मानता है कि उस दुर्घटना में उसकी जान क्यों नहीं चली जाती।
गरीब की जिंदगी का आज का सबसे बड़ा और कड़वा सच है यह।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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