बैठे-बैठे मन में मेरे एक सवाल आया
पेपरविफ पर लिखकर मैंने क्या पाया।
कुछ देर बाद ही दिल से यह जवाब आया
पेपरविफ ने मुझमें आत्मविश्वास जगाया।
वक्त हमेशा एक सा नहीं होता है
समाज के बंधनों को तोड़ना आसान कहाँ होता है।
पर तोड़ कर बंदिशें सारी
लिखने की जो की तैयारी
पेपरविफ को सबसे आगे खड़ा पाया
हाथ थामकर मेरा मुझको चलना सिखाया।
पेपरविफ पर उन दिनों थी एक प्रतियोगिता आयोजित
नाम था,"क्या भारत के किसान पीड़ित हैं?"
सोचा मैं भी कर कर देखूँ एक छोटी सी कोशिश।
मैंने भी सहभागिता दर्ज कराई
जब विजेताओं की घोषणा की बारी आई
तब देखा जो अपना नाम सूची में
हर्ष और उल्लास से मैं फूली ना समाई।
जब-जब अच्छा किया मैंने
पेपरविफ से प्रशंसा पाई
ना जाने कितनी ही बार माइक्रोफेबल्स में भी प्रथम आई।
नहीं सीखा पेपरविफ ने झूठी तारीफों से चने के झाड़ पर चढ़ाना
पेपरविफ की नसीहतों को सब लेखक अपने जीवन में अपनाना।
दूसरों की कामयाबी लगती है आसान बड़ी
मगर कामयाबी नहीं मिलती रास्ते में पड़ी।
अनेकों ख्वाब दिखा इन आँखों को
उन्हें हकीकत में बदलना सिखाया।
मेहनत करना सिखाया सबने
पर सही दिशा को पेपरविफ ने दिखलाया
कभी गलतियाँ समझाई मेरी
कभी हँस कर गले से लगाया।
नाचती गाती लहरों की तरह
ना जाने किस ओर से पेपरविफ मेरे जीवन मेें आया।
विवेकशील होने का पाठ पढ़ाकर
मेरे जीवन मेें प्रकाश का एक अनूठा दीप जलाया।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👏 👏 👏 आप ऐसे ही पेपरविफ के साथ आगे बढ़ती रहें।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
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