कभी पूजते हो इसको देवी की तरह
कभी इसको छप्पन भोग चढ़ाते हो
कभी डस लेते हो नजरों से अपनी
कभी राक्षस की तरह नोच खाते हो
कभी करवा देते हो गर्भ में ही हत्या
फिर इसको ही तुम परी भी बनाते हो
देते हो दुहाई पैरों पर खड़ा करने की
फिर खुद ही कदमों तले रौंदते जाते हो
क्यों महसूस नहीं होता दर्द इसका कभी
जिसके जज्बातों से रोज खेलते जाते हो
कभी तो इंसान समझो इस मासूम को भी
क्यों कन्या को एक खिलौना बनाते हो।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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मार्मिक
शुक्रिया।
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