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"बिन मांगे दी गई सलाह का महत्व अक्सर कम हो जाता है।"
यह तो हम सब लोगों ने सुना है, लेकिन बिन मांगे की गई मदद के बारे में क्या राय है?
शायद मदद किस प्रकार की गई है, यह इस बात पर निर्भर करता है।
यह कहानी है दो दोस्तों की, जिन्होंने समझाया कि बिन मांगे की गई मदद कैसे मुसीबत का सबब बन जाती है, कभी-कभार अपने लिए तो कभी-कभार दूसरों के लिए भी।
जमुनापुर गाँव में दो दोस्त रहते थे, एक का नाम था निकेतन और दूसरे का सुंदर। बड़ी ही निराली थी इनकी दोस्ती, निराली इसलिए क्योंकि दोंनो में एक भी समानता ना होते हुए भी दोंनो की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोंनो एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे।
जहाँ निकेतन स्वभाव से नर्म और मस्तमौला व्यक्ति था, वहीं दूसरी ओर सुंदर बड़ा गम्भीर व्यक्तित्व का इंसान था।
निकेतन चीनी का और सुंदर नमक का व्यवसाय करता था। दोंनो का व्यवसाय अच्छा चल रहा था।
निकेतन दिल का बहुत साफ था और उसकी आदत थी हर किसी की मदद करने की, चाहे किसी ने मदद माँगी हो या ना माँगी हो। उसकी यह आदत किसी के लिए वरदान बन जाती तो किसी के लिए मुसीबत। इसलिए गाँव के कुछ लोग निकेतन की इस आदत के कारण उससे दूरी बनाकर रखने लगे थे और वहीं कुछ लोग उसका फायदा उठाने का मौका ढूँढ़ने लगे थे।
वहीं सुंदर बेवजह कभी किसी के मामले में दखल नहीं देता था, हाँ, अगर कोई मदद के लिए बुलाता तो कभी इंकार भी नहीं करता था।
एक बार निकेतन ने देखा कि, सड़क किनारे एक व्यक्ति बड़ा हैरान-परेशान बैठा है और उसके आस-पास बहुत सा धान बिखरा पड़ा है और कुछ दूरी पर उसकी साइकिल भी गिरी हुई है।
निकेतन अपनी साइकिल एक तरफ खड़ी कर जल्दी से वहाँ गया और इससे पहले कि वह व्यक्ति कुछ करता या कुछ कहता निकेतन ने सारा बिखरा पड़ा धान इकट्ठा कर बाँध दिया और उसकी साइकिल भी सीधी कर दी।
उस आदमी ने आव देखा ना ताव, एक झन्नाटेदार तमाचा रसीद कर दिया निकेतन को। निकेतन को समझ ही नहीं आया कि आखिर हुआ क्या?
उस व्यक्ति ने चिल्लाना शुरु कर दिया जिससे गांव के बाकी सदस्य भी वहाँ एकत्रित हो गए।
"अरे ओ मूर्ख इंसान, यह क्या कर दिया तूने, मैंने इतनी मेहनत करकर तो यह धान फैलाया था धूप में और तूने सारा इकट्ठा कर दिया, किसने कहा था तुझसे यह सब करने को, बता मुझे।" निकेतन को गुस्से से हिलाते हुए वह व्यक्ति बोले जा रहा था।
गांव वाले निकेतन के ऊपर हँसते हुए और यह कहते हुए वहाँ से निकल गए कि इसकी तो आदत है दूसरे के काम में टांग अढ़ाने की और उसे खराब करने की।
तभी सुंदर वहाँ आया और उस आदमी को समझा-बुझा कर चुप करवाया और निकेतन को वहाँ से लेकर चला गया।
निकेतन और सुंदर की आपस में बहुत बनती थी और सुंदर निकेतन को हमेशा समझाता रहता था कि बेवजह किसी के काम में टांग मत अढ़ाया करो परंतु निकेतन ठहरा मस्तमौला इंसान वो कहाँ मानने वाला था।
लेकिन सुंदर को हमेशा डर लगा रहता था कि कहीं किसी दिन निकेतन अपनी इस आदत के कारण मुसीबत में ना फंस जाए।और वही हुआ जिसका सुंदर को डर था। सुरेश व्यापारी, उनके गाँव का रहने वाला बड़ा ही चालाक और धूर्त व्यक्ति था, उसे पता था कि निकेतन अपने स्वभाव के कारण कभी उसकी मदद करने से मना नहीं करेगा।
सुरेश, "निकेतन मुझे तुम्हरी मदद चाहिए, मेरा बहुत घाटा हो गया है इसीलिए मुझे कुछ समय की मोहलत चाहिए तुम्हारा पैसा लौटाने के लिए और साथ ही उधार पर कुछ चीनी भी चाहिए जिसे आगे बेचकर मैं घर का खर्चा चला सकूँ।"
निकेतन, "अभी ज्यादा माल तो है नहीं मेरे पास, यह दस किलो चीनी रखी है, तुम इसे ले जाओ, इतनी चीनी बेचकर तुम्हरा काम बन जाए तो देख लो।"
सुरेश इसी तरह कभी उधार पर तो कभी कम दामों में निकेतन से चीनी ले जाकर ज्यादा दाम में बेच दिया करता और जब पैसे लौटाने का समय आता तो कभी घाटा होने का बहाना बना देता तो कभी रोने-धोने का नाटक कर निकेतन का मन जीत लेता।
धीरे-धीरे निकेतन को व्यवसाय में काफी घाटा होने लगा और उसका चीनी का व्यवसाय बंद होने की कगार पर आ गया, लेकिन फिर भी उसने सुरेश से कभी पैसे माँगने की नहीं सोची।
निकेतन ने जब अपनी परेशानी सुुंदर को बताई तब सुंदर ने एक तरीका निकाला निकेतन के सामने सुुरेश की सच्चाई को लाने का और साथ ही साथ उसे यह समझाने का कि बेवजह और जरूरत से ज्यादा कभी किसी की मदद नहीं करनी चाहिए वर्ना दुनिया वाले आपको बुद्धु समझ आपका गलत तरीके से इस्तेमाल करने लग जाते हैं, जैसे अभी तक सुरेश निकेतन का करता आया था।
सुुंदर ने गांव वालों की मदद से सुरेश के खिलाफ सबूत इकट्ठा किये और मौका देखकर निकेतन को मनाया और एक दिन बिना बताए दोंनो सुरेश के घर पहुँच गए। उन्हें यूँ अचानक आया देख सुरेश घबरा गया, उसके मुँह से कुछ कहता ना बन रहा था और उसके घर के ठाठ-बाट देखकर यह कोई भी समझ सकता था कि उसका व्यवसाय घाटे में नहीं अपितु दिन दूनी और रात चौगुनी उन्नति कर रहा था, जिसका भरपूर श्रेय कहीं ना कहीं निकेतन को और उसकी नासमझी कहें या मासूमियत कहें उसको जाता था।
अब निकेतन को सुरेश की चालाकी समझ आ गई थी, उसने सुरेश से कह दिया कि तय समय की मोहलत के अंदर वो उसका पैसा लौटा दे वर्ना वह सुरेश को कचहरी तक ले जाएगा।
निकेतन ने सुुंदर को भी धन्यवाद किया, उसकी आँखें समय रहते खोलने के लिए, वर्ना तो वही कहावत चरितार्थ हो जाती कि 'अब पछतावे होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।'
अब सुुंदर निकेतन को समझाना चाहता था कि सिर्फ सुरेश ही नहीं और भी ना जाने ऐसे कितने धूर्त भरे पड़े हैं इस दुनिया में जो निकेतन जैसे मासूम लोगों का फायदा उठाने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहते।
सुुंदर ने इसके लिए एक तरकीब निकाली, उसने सबसे पहले दो ढ़ेर बनाए, एक चीनी का और एक नमक का। और फिर निकेतन को बुलाया और बोला, "देखो निकू (सुुंदर निकेतन को प्यार से निकू कहता था) चीनी के ढ़ेर के पास कितनी सारी चींटी आ पहुँची और नमक के पास एक भी नहीं।"
"हाँ, वो तो मैं देख ही रहा हूँ, इसमें नया क्या है सुुंदर।" निकेतन ने कहा।
अब सुुंदर ने फिर से दो ढ़ेर और बनाए, एक चीनी का और उसके आस-पास नमक फैला दिया तथा दूसरा नमक का और उसके आस-पास चीनी को फैला दिया।
"निकू देखो अंदर चीनी होते हुए भी बाहर नमक होने की वजह से चींटी उससे दूर है और वहीं अंदर नमक होते हुए भी बाहर चीनी होने की वजह से सारी चींटी वहीं मंडरा रही हैं। "
"हाँ, मैं सब कुछ देख रहा हूँ सुंदर पर मुझे समझ नहीं आ रहा आखिर तुम कहना क्या चाहते हो ?" निकेतन ने कहा।
"निकू, मैं यह कहना चाहता हूँ कि तुम अपने अंदर यानि अपने मन में और अपनी भावनाओं में तो भरपूर मिठास रखो, किसी को सच में जरूरत हो तो उसकी मदद भी अवश्य करो लेकिन हर वक्त मीठा बना रहने से ना केवल गलत व्यक्ति भी इन चींटियों की तरह तुम्हारे इर्द-गिर्द मंडराते रहेंगे और तुम्हारा फायदा उठाते रहेंगे उस सुरेश की तरह अपितु ऐसे स्वभाव के कारण तुम एक दिन इससे भी बड़ी मुसीबत में फंस सकते हो, समझे।" सुुंदर ने जवाब दिया।
निकेतन को सुंदर की बात अब अच्छे से समझ आ गई थी और अब उसने बेवजह किसी की भी मदद करना बंद कर दिया था।
अब धीरे-धीरे निकेतन का व्यापार फिर से तरक्की करने लगा था, जिसमें सुुंदर ने उसकी खूब मन लगाकर मदद करी थी।
दोस्तों, ऐसा नहीं है कि हमें किसी कि मदद ही नहीं करनी चाहिए, मदद अवश्य करनी चाहिए लेकिन मदद करने से पहले यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जिस व्यक्ति की हम मदद करने जा रहें हैं क्या सच में उसे हमारी मदद की आवश्यकता है या नहीं, कहीं वह हमारा गलत इस्तेमाल करने की चेष्टा तो नहीं कर रहा है।
सीख- "इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि, जरूरत से ज्यादा अच्छा होने पर दुनिया हमारा फ़ायदा उठाने लगती है।जितना जरूरी हो उतना ही दूसरों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाना चाहिए।"
✍शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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