बचपन

बचपन के सुहावने दिन।

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 02 Feb, 2021 | 1 min read
1000poems hindi poetry

बचपन का ज़माना भी

बड़ा खुशनसीब होता है,

कितना भी ढूँढो करीने से

दोबारा नहीं मिलता।


ना मिलते वो गलियारे

ना मिलता वो अपनापन,

ना मिलते दोस्त पुराने

ना मिलता वो आँगन।


खिलखिलाहटों के संसार में

होती ना ज़माने की फिक्र, 

बस होता था

दोस्तों और उनकी दोस्ती का जिक्र। 


वो छतों को टापकर

एक-दूसरे के घर जाना,

देर से घर लौटने पर

फिर माँ की डाँट खाना।


ना भूख की फिक्र

ना प्यास का ठिकाना,

ऐसा होता है बचपन का

प्यारा सा ज़माना।


कहते हैं ढूँढ़ने से

सब कुछ है मिल जाता,

पर ना मिलता जो वो है

बचपन का ज़माना।


बचपन की यादें भी

होती हैं अजीब,

भिगो देती हैं दामन

पर ना होता कोई करीब।

- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)

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