पापा की परी कहलाती हैं कहीं,
कहीं नवरात्रों में पूजी जाती हैं बेटियाँ .....
शक्ति का रूप हैं कभी,
कभी विद्या का भण्डार हैं,
लक्ष्मी का स्वरूप माना जाती हैं बेटियाँ.....
पैदा होने से पहले मारा जाता है इनको,
घर पर बोझ कहीं कहलाती हैं बेटियाँ.....
बेटा पैदा हो तो थाल हैं बजते,
सब सुन्न हो जाता जब पैदा होती हैं बेटियाँ.....
सारे अपनों से करती हैं प्यार,
बदले में तिरस्कार पाती हैं बेटियाँ.....
फूलों सी नाजुक और प्यारी होती हैं,
पर अंगारों-का सा जीवन बिताती हैं बेटियाँ.....
अपनी अलग पहचान बनाने का सपना लिए,
आज़ भी पति के नाम से जानी जाती है बेटियाँ.....
प्यार से पाल-पोस कर करते हैं इनको बड़ी,
फिर डोली में बैठा दी जाती हैं बेटियाँ.....
पलकों में हज़ारों सपने सजाए
विदा लेती हैं मायके से,
फिर दहेज़ की बलि चढ़ा दी जाती हैं बेटियाँ.....
एक मकान को घर बनाने वाली होती हैं,
फिर भी पराए घर की अमानत कहलाती हैं बेटियाँ.....
सबके जीवन में खुशियाँ बिखराने वाली,
कभी बेटी कभी बहन कभी पत्नी तो कभी माँ बन
अपनी खुशियों को मिटाती चली जाती हैं बेटियाँ.....
नारी शिक्षित-समाज शिक्षित का नारा लगाने वालों,
क्यों शिक्षा का समान हक ना पाती हैं बेटियाँ.....
पढ़ने-पढ़ाने को जब जाती हैं घर से बाहर,
क्यों चील-कौवों की तरह नोच ली जाती हैं बेटियाँ.....
हँसगुल्ले भी बनते हैं औरतों पर तो कभी,
भाभी, बहन और माँ की गाली खाती हैं बेटियाँ.....
कहते हैं बराबर का दर्जा होता है बेटे और बेटी का,
फिर क्यों अपना हिस्सा माँगने पर बेगानी हो जाती
हैं बेटियाँ.....
चिड़ियों सी चहचहाने वाली
मन में पंखों की उड़ान भरे,
पंख कटे पक्षी की तरह फड़फड़ाती हैं बेटियाँ.....
सबके आँसू पोंछने वाली,
अकेले में आँसू बहाती हैं बेटियाँ.....
जाने कब खत्म होगा यह अत्याचार,
और खुल कर साँस ले पाएँगी बेटियाँ.....
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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