मशरूफियत

मशरूफ इतने भी ना हों की अपनों के लिए ही समय ना निकाल पायें।

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 12 Feb, 2021 | 1 min read
1000poems moments hindi poetry

मशरूफ है जमाना इस कदर

गैरों की क्या औकात

इसे ना खुद की फिक्र;


अक्सर सोचती हूँ बैठकर

क्या कोई नहीं जिससे

बाँट सकूँ

कुछ उल्फत भरे पल;


आओ बाँटे ये पल

छोटे बच्चों के संग

जिन्हें आज का डर

ना कल की फिक्र;


कुछ अपनी कहूँ

कुछ उनकी सुनूँ

शायद मिल जाए कोई हल;


इतनी तेजी से जीवन जीने का क्या फायदा

ना ही कोई तहजीब

ना ही कोई कायदा;


मशरूफियत इंसान को

पत्थर दिल बनाती है

पर बिना जिंदादिली

जिंदगी कहाँ जी जाती है;


इसलिए जहाँ मिले-जैसे मिले

चुरा लो अपने लिए

कुछ उल्फत भरे पल;


ताकि जिन्दा रहे जिंदगी

और निकलते रहें कुछ हल।

- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)

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