अपने हाथों की लकीरो में वो अपनी
तकदीर लिखवाकर लाती हैं,
पर उनके हाथों की वो रेखाएं
जाने कहां छिप जाती हैं।
आँखों में संजो सपने नये-नये
अपने पिया के घर जाती हैं,
परन्तु आकार देने से पहले ही
अपने सब सपने भूल जाती हैं।
अपने हौसले के दम पर जब
एक नया मुकाम पा जाती हैं,
परायों की ही नहीं अपितु
अपनों की नजरों में भी खटक जाती हैं।
अपने होकर भी इनके हम
समझ ना पाए यह एक बात,
प्यार देती हैं सबको ये फिर
नफरत ही क्यों इनके हिस्से आती है।
इतना सब सहन करने को ये
बेटियाँ कलेजा कहाँ से लाती हैं।।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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