अलसायी सी जब मैं उठी सुबह-सवेरे
सोचा टहल लेती हूँ छत के बगीचे में मेरे
नीचे झांककर देखा जो थोड़ा
फिर मैंने अपना ही माथा फोड़ा
जहाँ कल कतार लगी थी पौधों की
आज वहाँ नयी मर्सिडीज खड़ी थी
देख नजारा भागी नीचे
अलसाई आँखों को मीचे
पूछा मेहता जी से कहाँ हो गए पौधे विलुप्त
कल ही तो लगाए आज कहाँ रख दिए गुप्त
सुन बात मेरी मेहता जी ने ठहाका लगाया
बोले भाभी मैंने एक भी पौधा कहाँ लगाया
वो सब तो नर्सरी से किराए पर आया था
पर्यावरण दिवस मनाने को मंगवाया था
कल कुछ मेहमानों को यहाँ आना था
पेपर के लिए एक फोटो निकलवाना था
अगर मैं यहाँ पौधारोपण करूँगा
गाड़ी भला फिर कहाँ खड़ी करूँगा
सुनकर बात उनकी आँखें फटी रह गई
खड़ी थी जहाँ वही जड़ होकर रह गई
समझ में आई अब पर्यावरण दिवस की क्या माया है
हर तरफ हरियाली को सिर्फ फोटो में दिखलाया है
असल में बस और दिन जैसा ही है यह
फोटो सेशन का बस नया कैप्शन है यह
बंद करो अपने जीवन से खेलना यह खेल
वर्ना हो जाओगे जीवन की परीक्षा में फेल
पर्यावरण दिवस मनाना पौधे लगाना नहीं है
पर्यावरण दिवस मनाना पर्यावरण बचाना है
पर्यावरण बचाना हेतु जान लो यह बात
सबसे पहले छोड़ दो कुछ वस्तुओं का साथ
एसी, गाड़ी, माइक्रोवेव, इनवर्टर और फ्रिज
छोड़ ना सको तो कम कर दो इनका क्रेज
पर्यावरण स्वयं ही खुशहाल हो जाएगा
जब इन वस्तुओं का मुखौटा उतर जाएगा
✍ शिल्पी गोयल(स्वरचित एवं मौलिक)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
उफ्फ्फ.... 😢
True
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