बंदिशें

असल प्रेम कहानियाँ विवाह उपरांत ही जन्म लेती हैं।

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Shilpi Goel
Shilpi Goel 16 Sep, 2021 | 1 min read
No restriction love happiness

"कुछ रंग प्रेम के देखे हैं ऐसे भी

जिनकी रंगत शोखी ना बन पाई

जिस प्रेम ने दी सिर्फ रुसवाई

ऐसे प्रेम को भी मिठास समझ

सदियों से सीने में जमा कर रखा है

धोखे में रखा दुनिया को या

खुद को दिया कोई धोखा है........."


"कोमल, बेटा ज़रा इधर तो आना।"

पापा जी की आवाज़ से कोमल अपने ख्यालों से निकल कर बाहर आई और अपनी डायरी बंद कर चल दी हकीकत के देश में, जहाँ रजत नहीं था उसका साथ देने को अब, थी तो बस उसकी धुंधली सी यादें।

"जी पापा, कहिए", कोमल ने कहा।

"बेटा वो कमलाकांत जी हैं ना अपने, उनका बेटा रोहित आया हुआ है कलकत्ता से, बड़ा ही भला मानस है, मैं चाहता हूँ तुम भी एक बार मिल लो........"

"बस पापा कितनी बार कहूँ मैं आपसे मुझे नहीं करनी दूसरी शादी, मैं खुश हूँ आप लोगों के साथ।"

"तुम समझती क्यों नहीं हो, हम लोग कब तक रहेंगे तुम्हारे साथ और फिर रजत के किए की सजा कब तक दोगी अपने आप को, माना वो हमारा बेटा था पर इतना नालायक होगा हमने नहीं सोचा था और उसकी करनी की ही सजा उसे मिली। तुमने हमें अपने माँ-बाबा का दर्जा दिया है, तो हमारा भी मन करता है हमारी बच्ची का घर बस जाए।"

इस बार नरेश जी सब सोच समझकर आए थे और कोमल की कोई बात नहीं सुनना चाहते थे।

उनके कहने पर कोमल रोहित से मिली और सबकी सहमति से रिश्ता पक्का हो गया।

आज कोमल ने दुल्हन के रूप में रोहित के घर में पहला कदम रखा था, अनायास ही उसे अपनी और रजत की शादी की याद आ गई और आँखों के कोर भीग गये, जिसे उसने अपनी तरफ से छिपाया तो जरूर लेकिन रोहित ने फिर भी सब देख लिया था।

कोमल ने रोहित से अपनी पिछली जिंदगी के बारे में कुछ नहीं छिपाया था।

कैसे वो और रजत काॅलेज में एक-दूसरे से मिले थे और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई थी और जिस रिश्ते को सबने खुशी-खुशी स्वीकार किया था, कैसे उसी रजत ने पूरे जग में उसकी जग हँसाई करी थी माँ ना बन पाने पर और जब रजत की एक एक्सिडेंट में मौत हुई तो पता चला उसकी बेवफाई का, रोमा के रूप में जिसे रजत के परिवार वालों ने मानने से इंकार कर दिया क्योंकि वो कोमल को अब और दुख नहीं देना चाहते थे।

रोहित के साथ अपने रिश्ते को शुरू करने में हिचक रखने वाली कोमल ना जाने कब रोहित के व्यवहार के कारण उसके प्रेम में पड़ती चली गई।

रोहित हर बात में कोमल का ख्याल ऐसे रखता था जैसे कोई छोटे बच्चे का रखता है, कोमल को कभी कोई तकलीफ ना हो इस बात का वह हमे आ ध्यान रखता था, कभी कोमल के बिना उसने खाना नहीं खाया।

लेकिन कोमल को एक बात हमेशा सताती थी कि रोहित एक सर्वगुण सम्पन्न लड़का था फिर भी उसने कोमल से, जो रजत की विधवा थी शादी करना क्यों स्वीकार किया, कोमल ने बहुत बार रोहित से यह जानने की कोशिश भी करी पर हर बार रोहित टाल जाता।

एक दिन कोमल ने रोहित के माँ-पापा को बात करते सुना, लेकिन उसे उनकी बातों का मतलब समझ नहीं आया, बस इतना समझ आया कि कोमल के माँ-पापा जानते थे रोहित को पहले से, आखिर सब क्या छिपा रहे थे कोमल से? यही सवाल अब उसे परेशान कर रहा था, वहीं दूसरी और रोहित ने आई वी एफ के जरिए अपने और कोमल के जीवन में खुशियाँ बिखरने की पूरी तैयारी कर ली थी, जिसे सुनकर ना केवल कोमल बल्कि पूरा परिवार खुशी से फूला नहीं समा रहा था।

सभी तरह के टेस्ट और इलाज के बाद आज पूरे एक साल बाद कोमल और रोहित के जीवन में 'महक और मुकुल', जुड़वाँ बच्चों की किलकारियाँ गूँजी थी।

अब कोमल ने रजत के माँ-बाबा को भी समझाकर, रोमा को अपनाने को कह दिया था, आखिर जो भी हो रोमा सिर्फ रजत की बेवफाई का ही सुबूत नहीं अपितु उनके घर के चिराग की माँ भी थी।

सबकुछ बहुत अच्छे से चल रहा था, अब कोमल रोहित से अपने सवाल का जवाब चाहती थी।

आज बच्चों का वास्ता देकर कोमल ने रोहित से पूछ ही लिया कि आखिर उसने कोमल को क्यों चुना शादी के लिए जबकि उसे कोई भी लड़की मिल सकती थी।

रोहित इस बार मना ना कर सका और सबकुछ बताया कोमल को, "कोमल जब तुम काॅलेज में थी, मैं तुमसे दो वर्ष सीनियर था और तब से ही तुम्हें पसंद करता था। मैंने यह बात अपने घर पर बताई तो पता चला तुम पापा के सबसे अजीज दोस्त शर्मा अंकल की बेटी हो, इसीलिए पापा खुशी-खुशी तुम्हारे और मेरे रिश्ते की बात करने तुम्हारे घर पर गए। हम में से कोई नहीं जानता था कि तुम रजत को पसंद करती हो वर्ना मैं कभी तुम्हारे घर रिश्ता ना भिजवाता।"

बस इतनी सी बात थी कोमल, रोहितने कहा।

"क्या आप सच बोल रहे हैं रोहित, आपको मेरी कसम मुझसे कुछ ना छिपाना" कोमल ने कहा।

"कोमल हम सबको पता था तुम कभी माँ नहीं बन सकती थी, क्योंकि मेरे पापा ने ही बचपन में तुम्हारा इलाज किया था, लेकिन हमें इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी, मैं तो बस तुम्हारे और रजत के प्यार के बीच में नहीं आना चाहता था।"

सारी सच्चाई जानकर कोमल के मन में रोहित के लिए प्यार ही नहीं इज्जत भी बहुत बढ़ गई, एक रजत था जिसे कोमल ने इतना प्यार किया फिर भी उसने कोमल की रुसवाई करी और एक रोहित है जो सब सच जानते हुए भी कोमल को इतना प्यार करता था कि उसे इन सब बातों से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था।

"कहाँ खो गई?, चलो खाना खाते हैं", रोहित ने कहा।

"कहीं नहीं", कोमल ने जवाब दिया। पर मन ही मन सोच रही थी कि, "क्या सच में कोई किसी को इतना चाह सकता है कि उसकी कोई कमी उसके लिए मायने ही ना रखती हो, क्या सच में रोहित इंसान है या फिर कोई देवता?"

"प्रेम पर लगी ना बंदिशें कोई

प्रेम पर लगा सका ना कोई पहरा,

जब प्रेम-लगन हो मन में सच्ची

तो ईश्वर भी उसका साक्षी ठहरा।"

कब कोमल की डायरी के अल्फाज़ बदल गए, उसे स्वयं भी पता ही ना चला।

दोस्तों आप सबको मेरी यह कहानी कैसी लगी बताइएगा जरूर।

धन्यवाद।

✍शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)




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