जिन्दगी का अहम हिस्सा है बदलाव,
ना सुलझने वाला किस्सा है बदलाव,
बदल गए हम-
बदल गए तुम,
अरे!देखो बदल गए कितने मौसम,
दोपहर को सांझ-
सांझ को रात होते देखा,
रात का पैगाम सुबह को देते देखा,
हाँ मैंने हर मंजर को बदलते देखा;
एक छोटे बालक को प्रौढ़ होते देखा,
एक छोटे से बीज को पेड़ होते देखा,
देखा है हरे-भरे खेत को भी-
फिर उसे बंजर होते देखा;
मेरा क्या मैं तो वक्त हूँ,
एक जगह कभी ना ठहरा-
मैं हर पल बदलता हूँ,
पर स्वंय से भी तेज़-
मैंने लोगों को बदलते देखा।
- शिल्पी गोयल(स्वरचित एवं मौलिक)
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