स्वर्ग से प्यारी धरती हमारी,
इसकी सुंदरता बड़ी निराली।
हरी-हरी गेंहू की बालियाँ यहाँ
बजाती हैं देखो तालियाँ यहाँ।
नाच उठती सब डालियाँ यहाँ
महकती हर ओर फुलवारियाँ।
नदियाँ,पर्वत और झरने प्यारे
पशु-पक्षी सब जीव हैं सारे।
धानी चुनरिया ओढ़कर धरती प्यारी लगती है
सूरज की किरणें इस पर गहनों जैसी सजती हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम की जन्मभूमि प्यारी
वेदों और उपदेशों पर जाऊँ बलिहारी।
हर नारी यहाँ पर राधा और सीता है
यह धरती हमारी कर्मक्षेत्र की गीता है।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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