अगर मैं एक टाइम मशीन होती तो बदलना चाहती इंसान की वह सोच जो भेद-भाव करती आई है बरसों से बेटा और बेटी में।
यही नहीं समाज की उस सोच को भी जो हर कदम पर महसूस कराती है बिना भाईयों की बहन होने का।ऐसी सब लड़कियों को सम्मान दिला पाती। उन लोगों की सोच बदल पाती जो महज भाई ना होने के कारण ऐसी लड़कियों से शादी करने से मना कर देते हैं।
उस माँ को सम्मान दिला पाती जिसे दुत्कारा गया हर कदम पर बेटा ना होने के कारण। उस एहसास से मुक्ति दिला पाती जो कहता है तुमने जमाने की सबसे बड़ी गलती नहीं बल्कि गुनाह किया है एक बेटा ना जन कर।
हर रिश्तेदार की उस सोच को बदल पाती जो एहसास कराती है कि, अगर एक औरत ने बेटे को जन्म नहीं दिया और उसकी बेटियों को अगर भाई नहीं है तो वो इज्जत की हकदार नहीं है और ना ही अपने घर की हिस्सेदार हैं।
चलिए सुनाती हूँ ऐसी ही एक कहानी आप सबको, एक औरत सुनयना की जिसके पास दो बेटियाँ हैं मधु और शीना।
बहुत प्यारा सा परिवार है इनका लेकिन समाज की नजर में कमी है तो एक बेटे की। जिसकी कमी समाज ही नहीं अपितु रिश्तेदार भी जाने-अनजाने महसूस करवाते रहते। किस्से तो ना जाने कितने रहे होंगे परन्तु जो मैंने देखे और महसूस किए वो आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ यहाँ।
पहला किस्सा-
एक बार सुनयना की बहन के बेटे की शादी हुई तो उनकी बहन ने सब महिलाओं को उपहार स्वरूप साड़ी भेंट की परन्तु सुनयना को यह सोचकर नहीं दी की उसको बेटा नहीं है तो वो किस नेग से उन्हें वापस देगी, बेटियों की शादी में तो उपहार दिए नहीं जाते थे उनकी मान्यता के अनुसार।
वहीं उन्होंने कुंवारी लड़कियों को नेग के फलस्वरूप २०१ का शगन दिया परन्तु मधु और शीला को २१ रुपये का शगन दिया गया।
दूसरा किस्सा-
सुनयना के भाई को पोता हुआ तो उसको कोई नेग नहीं दिया गया बाकि सब बहनों को दिया गया क्योंकि सुनयना को कभी पोता या पोती होंगे नहीं तो परिणामस्वरूप सुनयना वापस नेग देने की स्थिति में थी नहीं।
तीसरा किस्सा-
सुनयना के पति के जानने वाले मिठाई देकर जाते हैं तो उसके जेठ यह कहकर वो मिठाई सिर्फ अपने बच्चों को दे देते हैं कि भाई को तो सिर्फ लड़कियाँ हैं वो मिठाई खाकर क्या करेंगी। कभी घर पर फल आता तो सांझा परिवार होने के कारण सुनयना की बेटियों को उसमें भी कम ही दिया जाता।
चौथा किस्सा-
सुनयना और उसके पति को घर से निकाल दिया जाता है और हिस्सा देने से भी मना कर देते हैं क्योंकि उनके तो सिर्फ लड़कियाँ हुई हैं। और जब वो लड़कियाँ विरोध करती हैं तो उनके खिलाफ थाने में रपट लिखा दी जाती है और कहा जाता है उन्हें उनका हिस्सा देकर निकाला गया है।
पांचवां किस्सा-
जब मधु और शीला की शादी हो जाती है तो कोई रिश्तेदार उनको खाने का निमंत्रण नहीं देता क्योंकि उनको भाई नहीं है और जिनके भाई नहीं होता उनके साथ क्या नाता रखना। इसके ठीक विपरीत और सभी के बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार बिल्कुल नहीं किया जाता था।
आखिरी किस्सा (मेरी स्मृति में, फिर मेरी शादी हो गई और हमारा परिवार भी वहाँ से दूसरी जगह रहने चला गया।)-
सुनयना की बड़ी बेटी की शादी हुई तो उसने एक प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया तो उसको ससुराल में कहा जाता था कि माँ को बेटा नहीं था तो बेटी को कहाँ से होगा। उसकी सास कहती तुझे क्या पता क्या सुख होता है बेटे का ना तेरे बेटा है और ना ही भाई है।
यही नहीं और ना जाने कितने किस्से हैं ऐसे जो मुझे अब याद भी नहीं होंगे जो सुनयना जी के साथ घटित हुए होंगे, और सिर्फ सुनयना जी ही क्यों ना जाने कितनी ही औरतें हैं हमारे समाज की इस दोहरी सोच का शिकार। यही दोगला व्यवहार दर्शाता है हमारे समाज की बीमार और विकलांग मानसिकता को जो केवल बाहरी लोग ही नहीं अपितु हमारे अपने घर के लोग अपने मस्तिष्क में लिए घूमते फिरते हैं।
मैं चाहती हूँ उस वक्त में पहुँच जाऊँ जब से यह विकलांग सोच शुरू हुई थी और इसको उसी वक्त वहीं पर समाप्त कर डालूँ, जिससे हमारे देश में बरसों से चले आ रहे इस दोगलेपन की शिकार हर औरत को इंसाफ दिला पाऊँ।
काश मेरे पास होती कोई जादू की छड़ी जिसको घुमाकर सब ठीक कर पाती मैं और बरसों से इस भेद-भाव को मिटाकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर पाती।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
bahut badiya
शुक्रिया 🙏
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