प्रथम मनाऊँ मैं ईश्वर अपने
सबकुछ दूँ इनके चरणों पर वार;
संबल बनकर चलूं अपनों का
इसके बिना ना कोई पार;
आत्म सशक्त कर खुद को
दिला पाऊँ कमजोरियों को हार;
हौसला बुलंद करूँ इतना
उम्मीद को भी हो जाए मुझसे प्यार;
विश्वास रख खुद पर
हार से ना मानूँ हार;
शिक्षा का शस्त्र पहनकर
मिटा दूँ भय की हाहाकार ;
कोशिश करता जाऊँ परस्पर
खोल कर सकारात्मकता का द्वार;
सीख लूँ गलतियों से अपनी
बना लूँ संघर्ष को अपने गले का हार;
समय का रखकर सदा मान
सच्चाई को दूँ पहले स्थान;
परिणाम की चिंता भुलाकर
करूँ अथक परिश्रम हर बार;
मदद करने लायक बनूँ अगर
सार्थक कर पाऊँ अपने संस्कार।
- शिल्पी गोयल (स्वरचित एवं मौलिक)
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