Shilpi Goel
Shilpi Goel 25 Apr, 2025
जीवन प्राण
‌‌ना चाहूं भी तो करना पड़ता है रोज़ एक नये आकाश में उड़ना पड़ता है ज़िम्मेदारियाॅं हैं अनेक मेरे कांधे पर नहीं बैठ सकता उनसे मुंह फेर कर क्या कसूर था मेरा??? जो मुझ पर यह ज़ुल्म किया मेरे अपनों से मुझको जुदा किया करते होंगे बच्चे घोंसले में इंतजार उफ्फ़! कर दिया मुझको कितना लाचार क्यों देखा गया मुझे धर्म की कुदृष्टि से??? बनने से पहले हिन्दू या मुसलमान मैं भी तो था सिर्फ़ एक 'जीवन प्राण'!

Paperwiff

by shilpi goel

25 Apr, 2025

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