Shilpi Goel
09 Nov, 2022
हम
उलझनें सारी पल में सुलझ जाती,
अगर मैं और तुम की बीमारी
हम में बदल जाती....
ना रहती होठों पर कोई शिकवा-शिकायत,
गर यह कमबख़्त यादें
सीने में कहीं दफ़न हो जाती....
मुट्ठी भर जिंदगी का फ़साना है यहाँ
किसने किसको कितना जाना है यहाँ
आओ जी ले कुछ मुट्ठीभर ख्वाहिशें
अनकही-अलबेली सी
चुराकर लम्हे तकदीर की हथेली से....
बहकर तो जाना है सबने एक दिन,
बाकि तो रह जाएँगे बस वक्त के निशां।
Paperwiff
by shilpi goel
09 Nov, 2022
यादें
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