Shikha Shrivastava
03 Jul, 2021
कविता
भूल गए,जो भुलना था,जो रखना था उसे याद किया।
कुछ इस तरहा, हमने जीवन का साथ दिया।
वक़्त जो गुजर गया, उसका हमने न कभी मलाल किआ।
खुश रहकर ही जीवन के हर पल का इस्तकबाल किआ।
जो टूट गया,क्या जुड़ पाएगा,रो रो कर क्या कर लेते हम।
रूह को तक हमने अपनी,सब सहने को तैयार किया।
ख़ुशी सभी के,देख के हम भी खुश हो लेते हैं।
क्या अपनी ही खातिर ,जीने को जीना कहते है।
सब कुछ हवा हो जाता है, गर मन में हो स्नेह भरा।
हर लम्हा है फिर ,जोश भरा जब अपना अपनो पर वार दिया ।
कुछ कहना न सुनना है,बस जीवन का उपकार मना।
जो जैसा है उसको,वैसे का वैसा स्वीकार किआ।
शिखा
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by shikhashrivastava
03 Jul, 2021
कविता
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