Shikha Shrivastava
03 Jul, 2021
जिक्र
जिक्र होता है महफ़िल में मेरा, मेरे जाने के बाद।
होंसलो को मेरे, ज़मी पे गिराने के बाद।।
देखा नहीं हे महफ़िल में ,कोई भी कभी।
नज़रों मे नजरे डाल के, बातें कहे सही।
फिक्र थी तो, साथ देते वव्क्त् पर।
अब पूझते हो क्या, वक्त निकल जाने के बाद।
कल गया है,तो क्या, कल तो है अभी।
देख लेना ये,वक़्त गुज़र ज़ाने के बाद।
कौन कहता है, कि ,है गिरे होंसले मेरे।
पकड़ने की इनको न् है, ताकत् तुम्हें मिली।
गिरा ,कितना भी लो चाहे तुम् हमें,
फिर खड़े हो जाएंगे, हर बार ,
टूटने के बाद ।
शिखा
20:02:2021
Paperwiff
by shikhashrivastava
03 Jul, 2021
कविता
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