ये लो आ गई मां जी की चहेती बहू।ऐसा क्या देखा इसमें मां जी ने जो उठा लाई घर की बहू बनाकर। सादगी से परिपूर्ण कनक अपने सास ससुर की चहेती थी जिससे उसकी दोनों जेठानी ईर्ष्या से भरी रहती थी और उससे मेल जोल कम ही रखती थीं।
कनक ईश्वर पर बहुत विश्वास रखती थी और सुबह की शुरुआत भगवान के भजन से ही करती जिससे पूरा घर भक्तिमय हो जाता।दोनों जेठानी अपने काम धाम में लगी रहतीं।कनक भी जब फुर्सत पाती तो उनके पास जाकर हाथ बंटाती लेकिन पूजा पाठ और सास ससुर की सेवा करते उसे देर हो जाती।
लेकिन उसे ईश्वर और मां बाबू जी की सेवा में बहुत आनंद मिलता। भले ही उसे रोज खरी खोटी सुनने को मिलती।
दोनों बहुएं भी मां जी से यही शिकायत लेकर जाती की हम दोनों सारा दिन काम में लगे रहते हैं और आप लाड सबसे ज्यादा कनक को करती हैं।ये सुनकर सासू मां बस मुस्कुरा देती और कहती हीरा लाई हूं अपने छोटे बेटे के लिए।
धीरे धीरे समय बीतता गया।एक दिन ऐसा भी आया जब बंटवारा होने के लिए सब तैयार बैठे थे।आर्थिक रूप से कनक का पति सबसे कमजोर था वो घर में कुछ मदद न कर पाता जिससे और भाइयों को ये नागवार गुजरा।
खैर बंटवारा भी शुरू हुआ।घर का हर कोना दोनों बड़े भाइयों ने या तो बनवाया था या मरम्मत करवाया था कोई भी घर छोड़ने को तैयार न था। बड़ी मुश्किल से कनक के हिस्से में पुरानी दो कोठरी अाई जो बाबू जी ने बनवाई थी।कनक ने खुशी खुशी उसे स्वीकार कर लिया। अब बारी आयी मां बाबू जी की तो झट से दोनों जेठानी ने कहा हफ्ते हफ्ते की बारी लगा देते हैं।
कनक ने मां बाबू जी का चेहरा देखा उनकी आंखों की कोर भीग चुकी थी।
कनक ने आगे होकर अपनी दोनों जेठानी से कहा,"मां बाबू जी मेरे साथ रहेंगे वो भी हमेशा और इसके बदले मुझे कुछ न चाहिए।
दोनों जेठानियां की तो मन की मुराद मानो पूरी हो गई हो।
चलते चलते सासू मां ने अपनी दोनों बहुओं से कहा,"कहा था न हीरा लाई हूं"
दोनों बहुओं की आंखें शर्म से झुक गईं।
शिखा पांडेय
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