Shikha Bansal
shikhabansal
Share profile on
साथ..... हम सभी किसी ना किसी का साथ चाहते हैं.... और उसके लिए हम जतन भी करते हैं, लेकिन हम डरते हैं.... ऐसा कोई भी वादा करने से जिसके पूरा ना हो सकने का एहसास कहीं ना कहीं हमारे मन के कोने में छिप के बैठा होता है.... हम डरते हैं उन उम्मीदों के पूरा ना हो सकने के ख्याल से, जो किसी का साथ मिल जाने पर अनायास ही उससे जुड़ जाती हैं.... हमें डर है उस शख्स के छोड़ जाने के विचार मात्र से, जो उम्मीदों के टूट जाने के बाद की स्थिति से अवगत कराता है.... हम डरते हैं कि जो एकाकीपन, अकेलापन एक लम्बे अरसे से हमारे साथ रहा है, किसी के आ जाने के बाद उसकी निजता में पड़ने वाले खलल से, हमें डर है उन मर्यादाओं, सीमाओं, नियम, कायदे, उसूलों के टूटने के बाद समाज की प्रत्याशित, अप्रत्याशित प्रतिक्रियाओं से, जिनके निर्माण के भागीदार हम स्वयं रह चुके हैं.... हम नहीं बदलना चाहते कोई भी नियम क्योंकि उसके बनने और स्थापित होने में कई सदियों के विलीन होने के हम साक्षी रहे हैं..... जैसे मानो ये अपने आप में एक प्रकार की सभ्यता हो..... और हम डरते हैं सभ्यताओं के लुप्त हो जाने से, क्योंकि हमारे अंदर की मानवता कमज़ोर है नई सभ्यताओं को जन्म देने में..... हमारे अंदर का डर हावी रहा है हमारी ही अपेक्षाओं पे, जो एक विराम सा लगा देता है हमारे प्रयासों पर और हम कदम बढ़ाकर भी रुक जाते हैं दहलीज़ पार कर किसी का साथ निभाने जाने को.....
04 Nov, 2020