पी कर हलाहल
मैंने उसे मुस्कुराते देखा है
उसकी निश्छल हंसी में
विष को अमृत बनते देखा है
सात फेरों के साथ
नया सफ़र शुरू करते देखा है
उस नए रिश्तों को
मैंने अपनाते देखा है
संजो कर नए पुराने रिश्ते
तलवार की धार पर चलते देखा है
तो कभी रिश्तों के नाम पर
कुर्बान होते हुए देखा है
प्रियतमा से उसका मां तक का
खूबसूरत सफर देखा है
तो रोज़ अपनों से उसका
छले जाना भी देखा है
सब समझते हुए भी
उसका नासमझ बनना देखा है
और थक कर उसका
फूट फूट रोना भी देखा है
हां मैंने औरत को
रोज़ हलाहल पीते देखा है
और उसी ज़िन्दगी में उसे
खुशी से जीते देखा है।
शैली गुप्ता
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