छह साल की अर्शी ज़ोर ज़ोर से रो रही थी और बोल रही थी, "आज राखी का त्योहार है और सामने बिट्टू भैया हर बार की तरह मेरा राखी बंधवाने के लिए इंतजार कर रहे होंगे और जब तक मैं उन्हें राखी नहीं बांधूंगी वो कुछ नहीं खाएंगे। मुझे जाने दो वहां"।
अशरफ ने बड़े गुस्से से अर्शी को देखा। वो सहम गई और अपनी मम्मी इनायत के पीछे छुप गई। अशरफ ने अब गुस्से से इनायत को देखा और बोला,
"समझा लेना अर्शी को। कोई जरूरत नहीं है उसे सामने वालों के जाकर बिट्टू को राखी बांधने की। मैं ऐसे लोगों से कतई रिश्ता नहीं रखना चाहता", कहकर अशरफ काम पर निकल गया।
इनायत की आंखों में आसूं आ गए। सामने के घर में अजय भैया और सुनीता भाभी रहते हैं अपने सात साल के बेटे बिट्टू के साथ। तीन साल की थी अर्शी तब से बिट्टू को राखी बांध रही थी। एकदम घर जैसे संबंध थे उनके पर इस मंदिर मस्जिद की बहस ने सारे रिश्ते खराब कर दिए।
इनायत अपने आसूं पोंछ कर अर्शी को चुप कराने लग गई। बड़ा मुश्किल काम था ये। मासूम मन क्या समझें इस मंदिर मस्जिद की कवायद।
तभी घर की घंटी बजी। इनायत ने दरवाज़ा खोला। सामने सुनीता खड़ी थी अपने बेटे बिट्टू के साथ, हाथों में राखी का थाल और मिठाई लिए। बहुत सुंदर सी दो राखियां थी थाली में हमेशा की तरह - एक बिट्टू के लिए और दूसरी अर्शी के लिए।
इनायत की आंखें फिर से छलछला गई पर इस बार आसूं खुशी के थे। सुनीता की आंखें भी लबालब थी। दोनों बच्चे इतने खुश थे कि बस क्या बताएं। किसी ने एक दूसरे से कुछ नहीं कहा और अर्शी ने बिट्टू को राखी बांधी और खुद भी उस से बंधवा ली। इनायत को पता था कि सब भूखे होंगे सो वो किचन में जाकर नाश्ते का सामान लाने लगी जिसमें सुनीता ने उसकी मदद की और सब बैठकर नाश्ता करने लगे।
तभी दरवाजे की घंटी बजी। इनायत ने दरवाज़ा खोला तो देखा सामने अशरफ और अजय खड़े थे। वो डर गई कि अशरफ लड़ेगा।
तभी अशरफ बोला," घबराओ मत, मैं नहीं लडूंगा। आज सुबह अर्शी के आसूं मेरा दिल चीर गए। मेरी और अजय की लड़ाई में इन मासूम बच्चों का क्या कसूर जो ये पिस गए। मुझे खुद पर इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई कि यहां से निकल कर सीधा अजय की दुकान गया इस से गले मिलने और सब ठीक करने। वहां देखा ये भी दुकान से बाहर निकल रहा था और मुझे देखते ही गले लग गया।"
और बोला, "क्या यार, हम तो बच्चों से भी ज्यादा बेवकूफ निकले। इस मंदिर मस्जिद की लड़ाई में हमने अपने घर के मंदिर मस्जिद खराब कर दिए।कितना मान था हमारे रिश्ते में और अब देखो। आज बिट्टू सुबह से रो रहा था अर्शी से राखी बंधवाने के लिए। तब तो उसे डांट कर मैं दुकान चला आया पर मन कचोट रहा था। अब तेरे पास ही आ रहा था कि तू ही आ गया। चल घर चलते हैं और त्योहार बनाते हैं।"
"बस पहले हम अजय के घर गए, वहां ताला लगा देखा तो समझ गए कि सुनीता भाभी यहीं होंगी तो हम यहां चले आए।
अब जल्दी से हमें नाश्ता दो और मुंह मीठा करवाओ सबका दुबारा।"
सुनीता और इनायत के साथ साथ इस बार अजय और अशरफ की आंखें भी भीगी हुई थी।
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