मुसीबत की घड़ी

लोगों की कथनी और करनी में अंतर दिखाती कोरोना पर आधारित एक लघुकथा

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Shelly Gupta
Shelly Gupta 17 Mar, 2020 | 1 min read

 मुसीबत की घड़ी

प्रेमलाल जी अख़बार में से खबर पढ़कर साथ वाले दुकानदार को सुना रहे थे,"कोरोना के डर से डरे हुए लोगों को सरकार द्वारा अनिवार्य सेनेटाइजेशन की झूठी खबर देकर घरों में लूट पाट" और फिर बोले," देखो कैसा जमाना आ गया है। इतनी बड़ी मुसीबत की घड़ी में भी लोग दूसरों को लूटने का ही तरीका सोचते हैं बस ।"

साथ वाले दुकानदार ने भी बड़े दुखी अंदाज़ में प्रेमलाल जी की हां में हां मिलाई। 

तभी प्रेमलाल जी की दुकान पर ग्राहक आ जाता है और सेनेटाइजर मांगता है। प्रेमलाल जी सेनेटाइजर देते हैं और 500 रुपए का दाम बताते हैं जिस पर ग्राहक भड़क कर कहता है कि आप तिगुने दाम नहीं ले सकते ऐसे। जिसपर प्रेमलाल जी उसे टका सा जवाब देकर कहते हैं,"इसी दाम पर मिलेगा। लेना हो तो लो नहीं तो रहने दो। आगे मार्केट में तो सेनेटाइजर मिलेगा भी नहीं।" 

कोरोना से डरा ग्राहक दुखी मन से 500 रुपए देकर सेनेटाइजर खरीद कर चला जाता है और प्रेमलाल जी मुंह बनाते हुए दुबारा अख़बार पढ़ने लग जाते हैं।


शैली गुप्ता

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Shelly Gupta

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