बच्चों में आत्म निर्भरता
बच्चों की परवरिश का एक अहम पहलू है उन्हें आत्मनिर्भर बनाना। हर कदम पर हमारा मन करता है कि हम आगे बढ़ कर उनका काम कर दे ताकि काम सुंदर लगे। कितना अच्छा लगता है ना जब हम पेरेंट्स टीचर मीटिंग में स्कूल में जाते हैं और क्लास में चारों तरफ बच्चों के हाथों के बने सामान लगे हुए होते हैं, कहीं उनकी ड्राइंग और कहीं उनकी प्रोजेक्ट और प्रोजेक्ट फ़ाइल।
सब तारीफ कर रहे होते हैं पर साफ़ पता चलता है कि अधिकतर बच्चों ने नहीं उनके पैरेंट्स ने बनाई है। और जिनको देखकर पता चलता है कि बच्चों ने बनाया है, वो कहीं दूर कोने में उपेक्षित से पड़े होते हैं।
हमेशा मेरे मन में यही सवाल उठता है कि मकसद सुंदर प्रोजेक्ट बनाना थोड़े ही था बल्कि बच्चों को सिखाना था जोकि कहीं दूर रह गया। ऐसे में मेरे बच्चों का मुंह बना होता है कि मम्मी आप भी थोड़ी ज्यादा हेल्प कर देते तो हमारा प्रोजेक्ट भी डिस्पले में आगे लगा होता और मैं हर बार उन्हें बस यही समझाती हूं कि बेटा, तुम्हे सीखना तो पड़ेगा ही आज नहीं तो कल। और अभी शायद प्रोजेक्ट सुंदर कम बने पर एक दिन तुम मुझसे सुंदर बनाओगी।
और अब वो फर्क दिखने लगा है। उनके हाथ में सफाई आने लगी है और आनी भी थी प्रैक्टिस के साथ। अब उन्हें अच्छा लगने लगा है कि मैं उनको सिर्फ गाइड करती हूं, सब परोस के नहीं देती।
अच्छा लगता है अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनते हुए देखना। बस बच्चों को ये यकीन होना चाहिए कि कुछ गडबड हुई तो मां संभाल लेगी और फिर देखिए उनकी उड़ान।
शैली गुप्ता
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