तुम्हें मेरी जरूरत है
स्कूल में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता रखी गई थी - विषय था सबसे अलग, कुछ सच्चा। सब बच्चे भांति भांति के रूप धारण करके आए थे और स्टेज पर अपनी लाइनें बोल रहे थे। हर बच्चे के लिए ज़ोरदार तालियां बज़ रही थी। पर तभी स्टेज पर अगले आए बच्चे को देख सब हक्के बक्के से रह गए। उस बच्चे ने कुछ गोल सा खोल पहन रखा था जिस पर चित्र उकेरे हुए थे। अभी सब गौर से उन चित्रों को देखकर समझने कि कोशिश कर रहे थे कि उस बच्चे ने बोलना प्रारंभ किया।
"क्या हुआ, मुझे पहचान नहीं पा रहे? मैं तुम्हारी धरती हूं। हां, पता है मुझे धरती में नीला और हरा रंग ज्यादा होता है जबकि मुझमें ये दोनों रंग नाम मात्र के हैं क्योंकि यही वास्तविकता है। गौर से देखो जरा। तुम्हे दिखाई देंगी बड़ी बड़ी आलीशान इमारतें, बड़ी बड़ी मौत का धुआं उगलती फैक्ट्रियां व वाहन।जरा गौर से देखोगे तो दिख जाएंगे कुछ वृक्ष भी पर वन शायद ही कहीं मिले तो हरा रंग कहां से आएगा। ध्यान से देखोगे तो कुछ नदियां , समन्दर भी मिलेंगे पर अधिकतर नदियां नाले में तब्दील मिलेंगी। यही कारण है मेरे स्वरूप में से नीला रंग गायब होने का। और ये जो पहाड़ देख रहे हो ये आम पहाड़ नहीं हैं बल्कि कूड़े के पहाड़ हैं।
क्या हुआ होश उड़ गए सच्चाई देखकर। पर ये सच्चाई अभी पूरी नहीं हुई। ये सिर्फ आधा सच है। ये वो हिस्सा है जो तुमने मुझे दिया है और अब देखो मैं तुम्हे क्या देने वाली हूं।"
उस लड़के ने अब स्टेज की ओर अपनी पीठ कर दी थी। उसकी पीठ पर तबाही के मंजर बने हुए थे। कहीं भूकंप से जलजलाती धरती, कहीं सूखे से बंजर पड़ती ज़मीन, कहीं बाढ़ तो कहीं सुनामी। सब दर्शकों के रौंगटे खड़े हो गए वो मंजर देख कर।
उस लड़के ने फिर से बोलना प्रारंभ किया,"ये होगा मेरा हिस्सा। क्या सोचा था तुमने कि धरती को तुम्हारी जरूरत है? नहीं, मुझे नहीं तुम्हे मेरी जरूरत है। मैं हूं तो तुम हो। अब भी वक़्त है ,संभल जाओ वरना परिणाम इस से भी भयंकर होंगे।"
इतना कहकर वह लड़का सब को प्रणाम कर स्टेज़ से उतर गया पर इस बार कोई ताली नहीं बजी क्योंकि कोई ताली बजाने लायक बचा ही नहीं था। सबकी आंखों में खौफ था और शर्मिंदगी थी।
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