कॉफी का कप
"निशा, समझो ना बेटा। ऐसे अच्छा नहीं लगता मेरा और तुम्हारे पापा का तुम्हारी शादी के बाद तुम्हारे पास आकर रहना चाहे कुछ दिन के लिए ही सही।"
"मां, मैं कुछ नहीं जानती। अगर आप दोनों हमारे पास रहने के लिए नहीं आए तो मैं और निखिल समझेंगे कि आप अब भी हमारे कोर्ट मैरिज करने के कारण नाराज़ हो।"
बात करके निशा ने तो फोन रख दिया पर मां यानी कि बबीता जी उलझन में पड़ गई,"ये निशा तो कुछ नहीं समझती। पहले तो बग़ैर बताए शादी कर ली और अब ये नई ज़िद। इकलौती होने के कारण कुछ ऊंच नीच नहीं समझती। कैसे इसके पापा को समझाऊं और अगर ये समझ भी जाएं तो वहां जाने पर निखिल का व्यवहार जाने कैसा हो, ये सब इसे बिल्कुल समझ नहीं आता। अभी जानते ही कितना हैं हम उन्हें।"
लेकिन हुआ वहीं जो निशा चाहती थी और मां पापा कुछ दिन के लिए उनके पास आने को तैयार हो गए। दोनों ही अंदर से थोड़ा डरे हुए थे पर निखिल बहुत अच्छे से मिला।
अगले दिन बबीता जी आदत के हिसाब से सुबह सवेरे ही उठ गई। अभी कमरे से बाहर आकर सोच ही रही थी कि कैसे धीरे धीरे अपने लिए कॉफी बनाए कि तभी किचन से आती खटपट की आवाज़ सुन वो वहां गई।
अंदर निखिल ट्रे में दो कप कॉफी के लगा रहा था। उनकी आहट सुनकर पलटा और गुड मॉर्निंग बोलकर कहने लगा," मम्मी मुझे पता है कि आप भी मेरी तरह सुबह जल्दी उठ जाती हैं इसलिए अब से सुबह की कॉफी हम दोनों साथ पिएंगे।"
उस दिन कॉफी के कप साथ बबीता जी के सारे डर दूर हो गए ।
शैली गुप्ता
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.