किचन का सारा काम निपटा कर जैसे ही श्रेया ने कमरे में कदम रखा तो वहां का नज़ारा देखकर हैरान रह गई। पूरे बिस्तर पर काग़ज़ ही काग़ज़ बिखरे हुए थे और बीच में उसकी बेटी मिनी बड़े आराम से बैठी एक कॉपी और फाड़ने में लगी हुई थी।
श्रेया को बड़ा गुस्सा आया पर किसी तरह उसने अपने गुस्से पर काबू पाया। ये तो मिनी का हर रोज़ का काम हो गया था और श्रेया उसे डांट कर भी देख चुकी थी। तो अब श्रेया ने कुछ अलग करने का सोचा।
श्रेया मिनी के पास जाकर बैठ गई। उसे देख मिनी डर गई।उसे लगा कि मम्मी फिर से उसे डांटेंगी। पर श्रेया ने मिनी से पूछा," बेटा, आपको पता है कि ये पेपर किससे बनता है?"
मिनी ने ना में सिर हिला दिया।
तब श्रेया बोली,"ये पेपर पेड़ से बनता है और जितने पेपर हम ज्यादा इस्तेमाल करेंगे उतने ज्यादा पेड़ हमें काटने पड़ेंगे।"
इस पर मिनी कहने लगी,"तो क्या हुआ मम्मी, क्या फर्क पड़ेगा ज्यादा पेड़ काटने से?"
तब श्रेया ने कहा," कल हम बाज़ार गए थे तो आपको बहुत गर्मी लगी थी ना, अगर ज्यादा पेड़ होंगे तो मौसम ज्यादा अच्छा और सुहावना रहेगा।
आपको बारिश और इन्द्रधनुष पसंद है ना, अगर पेड़ होंगे तभी बारिश होगी वरना धीरे धीरे बारिश होनी काम हो जाएगी।
और अगर बारिश होनी कम होगी तो धीरे धीरे मिनी की पसंद की भिंडी और सेब भी होने कम हो जाएंगे।
हम जहां रहते हैं यानी धरती मां को पेड़ बहुत पसंद हैं और अगर हमने पेड़ कम कर दिए तो वो गुस्सा हो जाएंगी और हमें अपने यहां रहने नहीं देंगी।
इसलिए हम सबको ऐसे काम नहीं करने चाहिए जिस से धरती मां नाराज़ हो। "
सब बातें ध्यान से सुनती मिनी बोली,"अच्छा, तभी आप मुझे पेपर फाड़ने पर डांटती थी। मैं आगे से कभी पेपर नहीं फाडूंगी और धरती मां को हमेशा खुश रखूंगी।"
अब श्रेया के चेहरे पर भी सुकून था। उसे यकीन था कि मिनी उसकी बात अच्छे से समझ गई है और खुद भी अपनी बेटी को एक अच्छी सीख दे वो बहुत खुश थी।
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