पथरीली ज़मीन हो या
नदी के मुहाने पर
कभी सूखे की मार
कभी ओले का डर
कभी बाढ़ की त्रासदी
कभी पाले का कहर।
भारतीय कृषि जिसे कहते थे
मानसून का जुआ है
उसके हालात में आज भी
कुछ खास परिवर्तन नही हुआ है
किसान पहले बैलों के सहारे था
अब ट्रैक्टर और थ्रेशर के सहारे।
खुदवाता है कुआं अगर तो
कर्जदार होता है, मग़र
अच्छी फसल की आस में,
बैंक का ब्याज ढोता है फिर भी
मंडी में अनाज का सही मोल कहाँ पाता है
आधा बिचौलिया आधा बाबू खाता है।
प्याज 100 रुपये किलो भी बिके जाए
तो भी वो दो रुपये ही पाता है
लेकिन उसके बच्चे अब सयाने होगए है
खेती -किसानी की सरदर्दी नहीं लेते
शहरों में जाकर मज़दूर होगए है
बूढ़ा किसान ,फिर भी धरती माँ की सेवा करता है।
ज़मीन मेरी माँ है कहता है,
जब तक हड्डियों में दम है ,मैं अन्न उपजाऊँगा
अपना पेट भरे या नही
तुम्हारी भूख मिटाऊंगा
मग़र जब भी मैने मांगा है अपना हक
तुमने सिर्फ लाठियाँ भांजी है!
मैं गलाता हूँ अपने पैरों को धान के खेत में
जलाता हूँ खून अपना जेठ की तपती दोपहर में
तब कहीं निवाला तुम्हारी थाली में आता है,
साहब वो दो जोड़ी कपड़े में साल निकलता है
बिटिया की शादी हो या छप्पर की मरम्मत
पिता का ऑपरेशन भी अगली फसल पर टालता है
अरे साहब मरे हुए को कितना मरोगे..
मैं तो ख़ुद ही करलेता हूँ हर हालत से समझौता
मगर जब हिम्मत हारता हूँ
आत्महत्या कर लेता हूँ,
सोचों अगर मैं बगावत करदूँ और
अन्न उपजाना छोड़ दूँ
तो तुम क्या खाओगे?भूखे रह पाओगे?
क्या तुम किसान बन पाओगे..
???
--- शीतल रघुवंशी
#किसान #कृषक #भारतकाअन्नदाता #जयकिसान
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
एक किसान की वेदना को इतने खूबसूरत अंदाज में समाज के सामने रखने के लिए, बहुत शुक्रिया शीतल...।
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