Titleगृहप्रवेश

जो खो गया है उसे पकड़कर रखने से वर्तमान से हाथ धो बैठोगे। क्या पिता पुत्र के बीच की अबूझ दिवार को तोड पाएगी नेहा? पढ़ें नेहा का बहू से बेटी बनने का सफर।

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Shalini Narayana
Shalini Narayana 03 Jun, 2020 | 1 min read

फोन की घंटी लगातार बज रही थी और राम दयाल जी वहीं बैठक में बैठे अखबार पढ़ रहे थे। रसोई की तरफ नज़र उठाकर देखा की शायद उनकी बहु आ कर फोन उठा लेगी पर कोई हरकत नहीं देख वे खुद उठे और फोन उठाया हलो !! कौन? दूसरी तरफ से आवाज आई बाबूजी प्रणाम ! हम बीरू बोल रहे हैं बनारस से। नेहा बिटिया से बात करनी थी। राम दयाल जी सकते में आ गए।बीरू तो उनके बनारस के पुश्तैनी हवेली का नौकर है।उसे भला नेहा से क्या काम हो सकता है? नेहा कहीं बाहर गई है तुम मुझे बता दो मैं बहु को खबर कर दूंगा। बीरू ने कहा हवेली की साफ सफाई हो गई है और सब कुछ ठीक कर रहने लायक कर दिया है। रामदयाल जी ने फोन झटके से काट दिया। और सोच में पड़ गये की एक साल बाद अचानक से पुश्तैनी हवेली को रहने लायक क्यों बनाया गया? क्या मैं अपने बेटे और बहू पर बोझ बन गया हूं? क्या नेहा और आकाश मुझे बनारस में अकेला छोड़ आएंगे? बहुत से प्रश्न उनके दिमाग में चकरी की तरह घूमने लगे। उठकर अपने कमरे की ओर चल दिए। शारदा जी के आकस्मिक निधन ने उन्हें शांत कर दिया।खालीपन और उदासी पत्नी के जाने के बाद से ही उन पर हावी हो चुका है। आकाश और उनकी बहू उन्हें अपने पास शहर ले आए। भारी मन और कदमों से वे अपने कमरे की ओर आ गए। शारदा जी की दिवार पर लगी तस्वीर देख कर उन्हें बताने लगे " देख रही हो आकाश और नेहा पर मैं बोझ बन गया हूं। बनारस की अपनी हवेली रहने लायक बनवाया गया है। मुझे खबर तक नहीं की । मैं भी देखता हूं कब तक मेरे पीठ पीछे काम करवाते हैं।" कहते कहते उनका गला रुंधे गया।

पापाजी पापाजी !!! खाना लगा दिया है आ जाईए। नेहा की आवाज़ ने उन्हें जगाया। देखा तो सामने उनकी बहू नेहा खड़ी थीं। शारदा जी के जाने के बाद वो पूरी तरह से बेटे बहू पर निर्भर हो गये थे जो उन्हें अच्छा नहीं लगता था। बेटा और बहू जब भी पास आने की कोशिश करते वो पीछे हट जाते एक अबूझ सी दिवार खींच दी उन्होंने। किसी कारण या शिकायत जैसी भी बात नहीं। कारण उन्हें खुद भी नहीं पता था और न ही बेटे बहू को।

आकाश ने अपने पिता की तरफ कभी विरोधातमक रवैया नहीं अपनाया पर पिता और पुत्र में कभी भी सहजता का रिश्ता नहीं रहा।उनके बीच की कड़ी शारदा जी थी और उनके जाने के बाद नेहा ने पूरी घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली और पूरी कोशिश करती की पिता पुत्र सहज हो जाएं। नेहा बखूबी जानती है कुछ दूरियां तभी खत्म होंगी जब वो माध्यम न बने और पिता पुत्र आपस में बात करें। संवाद और बातों का आदान प्रदान होते रहे तो रिश्ते कभी सूखेंगे नहीं। 

पापाजी क्या हुआ? नेहा ने उन्हें फिर से आवाज दी।

कुछ नहीं भूख नहीं है । कुछ जरूरत होगी तो मैं खुद ले लूंगा। रामदयाल जी ने कठोर शब्दों में कहा।

कटुता, क्रोध और तिरस्कार,कठोर चेहरा बस यही प्रतिक्रिया मिलती है उसे रामदयाल जी की तरफ से।नेहा को इस की आदत सी पड़ गई थी। पर नेहा ने अपने फर्ज से कभी मुंह नहीं मोड़ा।वो अच्छी तरह जानती है की शारदा जी का बरसों का साथ और उन पर उनकी निर्भरता की कमी रामदयाल जी को बहुत खलती है जिस वजह से वह खिन्न रहते हैं। पर नेहा उनकी सब जरूरतों का पूरा ख्याल रखती है और जानती है उन्हें कब क्या चाहिए।

नेहा और आकाश की शादी को सिर्फ एक साल ही हुए और शारदा जी बहू का सुख भोगे बिना ही चलीं गईं। नेहा ने जब गृहप्रवेश किया था तब सहम गई थी कैसे इस घर को संभालेंगी बिना सास के घर और घर वालों की जरूरतों को कैसे समझ पायेगी। अम्मा(सास) होती तो मदद हो जाती। पिता और पुत्र के बीच संवाद नहीं होता।सब कुछ उसे खुद सीखना और सम्हालना था।कैसे पिता पुत्र के बीच पहले ठंडेपन को मिटाएगी। कितनी कम बातें होती हैं पिता पुत्र के मध्य बिल्कुल न के बराबर। पूरे घर में एक अजीब सी चुप्पी छाई रहती ।उसे अपने घर की याद आती जहां वो अपने पिता से हमेशा चिपकी रहती थी और उसके बाबा हमेशा उसे चैटर बाकस कह कर छेड़ते रहते। मां से बच्चों का लगाव होना स्वाभाविक है पर बच्चों का पिता से लगाव होना आवश्यक है।

खैर ! पापाजी और आकाश के बीच छाई रहने वाली चुप्पी और असहजता को दूर करने के लिए नेहा हर रोज़ कोशिश करती ।पापाजी का उसके प्रति रूखा व्यवहार और कठोर लहजा उसे तकलीफ़ तो देते पर मां की सिखाई बात के लड़कियां पढ़ लिख कर कितनी ही आगे निकल जाए पुरूषों से पर गृहस्थी चलाने के लिए सहनशीलता ही हर मोड़ पर काम आती है ।उसने गांठ बांध ली थी। नेहा जानती है पापाजी का कठोर मन किसी न किसी दिन पिघलेगा।वह सुबह शाम उनकी देखभाल करती ,समय समय पर दवाईयां, खाना सब देती।शाम के सैर पर पाठक जी के साथ भेजती।जब भी पाठक अंकल (उनके पड़ोसी) को देखती उसका मन होता काश पापाजी जी भी उनकी तरह खुश रहते। पाठक जी रामदयाल जी के काफी करीब मित्र बन गए थे और दोनों रिटायरमेंट के बाद बेटे के साथ रह रहे हैं और दोनों की पत्नियों का स्वर्गवास हो गया पर दोनों मित्रों में जमीन आसमान का अंतर। 

रामदयाल जी शाम को सैर पर निकले और पाठक जी से मिल कर अपने मन की बात कही " यार लगता है बच्चों पर मैं बोझ बन गया हूं।वो लोग मुझे बनारस भेजने की सोच रहे हैं। मुझे अभी तक बताया नहीं । कहते कहते उनका गला रुंधे गया। पाठक जी ने कंधे पर हाथ रख रामदयाल जी को समझाया " बच्चों से कटे कटे क्यों रहते हो यार, अपनापन दिखाओगे तो उन्हें भी आत्मियता का अहसास होगा।उनकी खुशियों में शामिल हो ,घर के छोटे काम में हाथ बंटाने से तुम्हारी बोरियत भी कम हो जाएगी और अकेला पन भी नहीं खलेगा।बहू बेटे से खुल के बात किया करो। परिवार है वो तुम्हारा। भाभी जी के जाने का दुःख समझता हूं मैं पर बच्चों की तरफ इतनी रुखाई क्यों? उन्हें अब भी तुम्हारी जरूरत है। जहां तक मैं नेहा और आकाश को जानता हूं वो तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे। मैं भी तुम्हारी तरह अकेला हूं रामदयाल पर मैं बहू की घर के कामों में मदद कर देता हूं। बेटे के बाहर की जिम्मेदारी वाले काम मैं कर देता हूं जब वो दफ्तर के कामों में उलझा रहता है। जीवन को निरंतर गति से बढ़ते रहने दो।जो खो चुके हो उसको पकड़कर रखोगे तो वर्तमान से हाथ धो बैठोगे।

सैर कर वापस लौटे रामदयाल जी के मन में बहुत उथल पुथल मची थी।खाने की मेज पर नेहा ने बात छेड़ी पापाजी कल सुबह की टिकिट कराई है बनारस जाने के लिए ,सुबह की गाड़ी है। रामदयाल जी के चहरे की कठोरता बढ़ती गई और खाना बीच में छोड़कर वो अपने कमरे की और चले गए।

रात कमरे में आकाश ने नेहा से कहा " तुम्हारे बातों में आकर मैंने टिकट तो करवाया दिया अब देखो पापाजी नाराज हो गए।" नेहा ने आकाश के हाथों को मजबूती से पकड़ा और कहा " पापाजी को थोड़ा सक्रिय होना पड़ेगा , निसहाय और अकेला होने की भावना से बाहर निकलना होगा वर्ना दूसरों पर निर्भर हो जाएंगे। मन की उदासी और मौन से बाहर निकल कर खुद के लिए और हमारे लिए जीना होगा। वरना खुद को मौन रख कर आत्म प्रताड़ित कर घुट घुटकर जीना उनका स्वभाव बन जाएगा।मुझ पर भरोसा रखो मैं पापाजी को खोने नहीं दूंगी।

पूरी रात रामदयाल जी की बेचैनी में गुजरी।अगली सुबह वो अपना बैग लेकर बैठक में बैठे गए।देखा तो कार के पास दो सूटकेस और रखें हैं।उनके चेहरे पर असमंजस की लकीरें उभर आई। पीछे से नेहा और आकाश भी घर को ताला लगाकर आ गये। चलें पापाजी कहकर नेहा ने कार का दरवाज़ा खोला। रामदयाल जी चुपचाप अंदर बैठ गये।पूरे रास्ते वो खामोश रहे।बनारस पहुंच कर बेटे और बहू ने उनकी जरूरतों का पूरा ख्याल रखा। पुश्तैनी हवेली में उनको सुकून सा महसूस हुआ। शारदा जी की यादें और खुशबु बसी हुई हैं उस हवेली में।घर का हर कोना शारदा जी का सजाया हुआ। बीरू तुमने हवेली बहुत अच्छी तरह सम्हाल के रखा है। हवेली के बाहार बागीचे में भी बहुत सारे पौधे और फूल ठीक उसी तरह खिले हुए थे जैसे शारदा जी के समय में हुआ करते थे। बीरू ने रामदयाल जी को बताया बाबूजी नेहा बिटिया हर दिन फौन पे हमार और हवेली के हाल चाल पूछत रहीं।आकास बिटवा भी पैसा भेजत रहींन हवेली और हमार खातिर तभैं तौं हवेली नवा नवा साल लग रहा है। बहुत भाग हैं आपकै बाबूजी नहीं तो आज के जुग में ऐसन बहुरिया और बिटवा कहां मिलता हैं। अम्मा जी की हर चीज बहू ने सम्हाल के रखीं हैं। पाठक जी की बातों को ध्यान में रख कर अब रामदयाल जी शाम को बागीचे में नेहा के साथ पौधों में पानी डालना लगे।शारदा जी के पुराने किस्से सुनाते और नेहा और आकाश के साथ सैर पर भी जाते। एक हफ्ते बहुत ही सुकून से गुजरा। आकाश ने शाम को रामदयाल जी को बताया की वापसी की टिकिट हो गई है।उनका जी धक से हो गया और वो समझ गये की अब उन्हें इस घर में अकेले रहना है और उनके बेटा बहू उन्हें बुढ़ापे में छोड़कर जा रहे हैं। उन्होंने कुछ नहीं कहा। सुबह नेहा चाय देने कमरे में आई और कहा" पापाजी लाइए मैं आपका सूटकेस जमा दूं। उन्होंने आश्चर्य से नेहा की तरफ देखा। मुझे लगा तुम लोग मुझे यहां छोड़कर वापस ...जा रहे हो कहते कहते उनके शब्द गले में अटक गये। पापाजी ये आप ने कैसे सोच लिया? हम आप के बगैर कैसे जा साकते हैं। हमने तय किया है हर महीने कुछ दिनों के लिए हम सब यहां आएंगे ताकी आप को अम्मा की कमी न खले और हम कुछ समय सब साथ बिता सकें। हमें पता है आपको शहर में खालीपन महसूस होता है पर आप हम लोगों की वजह से अडजस्ट कर रहे हैं। नेहा की बातें सुनकर रामदयाल जी की आंखें भर आईं। 

पूरे रास्ते और पिछले एक हफ्ते उन्होंने आत्ममंथन किया और लोग जब आत्ममंथन करते हैं तो मन और दिमाग में लगे जाले और काले बादल साफ होने लगते हैं। उन्हें अहसास होने लगा के उनकी दशा सुखद है, रिटायरमेंट के बाद जो पेंशन मिलता है वो बैंक में पड़ा रहता है।जब मन करता है वे अपने जरूरतों के लिए इस्तेमाल करते हैं। आकाश बिन कहे उन की पसंद की चीजें और जरूरत का सामान ले कर आ जाता है। बहू बिना किसी अपेक्षा के उन की निस्वार्थ सेवा करती है बेटी की तरह। उन्हें लगने लगा की बेवजह ही उन्होंने अपने आप को बच्चों से काट के रखा था जो सिर्फ उनकी खुशियों के बारे में सोचते हैं। इन्हीं ख्यालों में खोये कब घर आ गया पता नहीं चला।

सामान वगैरह सब जगह पर रखने के बाद रामदयाल जी ने मुंह हाथ धोए और कहा बाजार से मैं सब्जियां ले आता हूं। नेहा मुस्कुरा दी और रसोई में चली गई कुछ खाने का इंतजाम करने। थोड़ी देर बाद रसोई के दरवाजे पर पापाजी ने आवाज लगाई " नेहा बेटा जरा अदरक वाली चाय और पकौड़े बना दोगी " उनके मुंह से बेटा सुन नेहा का मन और आंखें अंदर तक भीग गई।जरूर पापाजी कह कर वह तैयारी करने लगी। पीछे से आकाश ने कहा अरे वाह! हम भी खायेंगे । पिता पुत्र के बीच की दीवार धीरे धीरे दरकने लगी। दोनों साथ-साथ खड़े थे।अदरक की चाय की महक के साथ रिश्तों की सौंधी महक उठने लगी।बहू से बेटी बनने का सफर काफी लंबा होगा पर शुरूआत तो हो गई सोच नेहा मुस्कुरा दी।नेहा को लगने लगा आज सही मायनों में उसका गृहप्रवेश हुआ है।



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Shalini Narayana

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    सुंदर रचना

  • Babita Kushwaha · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत बढ़िया

  • Vineeta Dhiman · 4 years ago last edited 4 years ago

    Badhiyaa 👌👌

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