अंतरनाद।।

ना का मतलब ना होता है।

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Shalini Narayana
Shalini Narayana 05 Oct, 2020 | 1 min read


पापा की परी नही शेरनी बनने का वक्त आ गया!!निर्भया, मनीषा, प्रियंका न जाने कितने नाम न जाने कितने बेकसूर लड़कियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। उन्नाव की बेटी ने कानून के फैसले की बांट जोहते जोहते अपनी आंखें मूंद ली,7 साल से र्निभया के माता-पिता इंतजार कर है उनकी बेटी के साथ कानून इंसाफ करेगा। मनीषा का अंतिम संस्कार संदिग्ध परिस्थितियों में कर दिया गया।पर नहीं कही कुछ नहीं होगा,कुछ दिनों तक दिलों मैं उफान रहेगा ,केंडल मार्च होगा, टीवी पे बहस बाजी जारी रहेगी, राजनीतिज्ञ अपनी अपनी रोटियां सेंकेंगे, पक्ष विपक्ष पर लांछन लगाएंगे, मीडिया विभाग अपनी टीआरपी बढ़ाने में मशगूल रहेगा पर भुगतभोगी के हाल को कोई नहीं समझेगा।घृणित कार्य करने वाले न उम्र देखते हैं न जगह देखते हैं उन्हें बस औरत एक भोग की वस्तु की तरह दिखती हैं।पर कानून सज़ा देने के पहले दुनिया भर की दलीलें देकर उनका बचाव करती है। छोटे छोटे उम्र के लड़के ऐसा घृणित कार्य करते हैं उनकी मानसिकत इतनी निम्न स्तर की होती है पर कानून उन्हें सज़ा देने के बजाय बाल गृह भेजता है अगर वह घृणित कार्य कर सकता है तो बाल संरक्षण गृह क्यों? अगर उम्र से वह बच्चा है तो हरकतें बच्चों वाली क्यों नहीं? मानवाधिकार वाले उनको बचाने कूद पड़ते हैं यह जानते हुए की जो दरिंदगी उन लोगों ने की है वो क्षमा योग्य नहीं है। कानून कितने भी बदल डालिए जब तक सज़ा विभत्स नहीं होगी लोगों में डर नहीं बैठेगा। सज़ा देने का पूरा अधिकार सिर्फ पीड़िता और उसके परिवार का होना चाहिए क्यों की उस त्रासदी से वो लोग ही गुजरे हैं।हीन दृष्टि से पीड़िता को नहीं उन दरिंदों को देखें जो सिर्फ क्षण भर के भूख के लिए किसी की भी जिंदगी से खेलते जाते हैं।

बेटियों को परी नही शेरनी बनाओ,घर के काम ,संगीत, नृत्य भले ही न आए पर हथियार चलाना आत्मरक्षा करना अवश्य आना चाहिए।इस कलयुग में बचाने कृष्ण नहीं आएंगे, खुद दुर्गा बन महीशासुर को मारना होगा।कानून साथ नहीं दे रहा है इसलिए औरतों को अपनी आत्मरक्षा करने का पूरा हक है और वो अपनी रक्षा किसी भी हद तक जाकर कर सकती है। 

क़ानून की दुहाई देने वाले ये क्यों भूल जाते हैं की दरिंदगी करने वालों ने कानून को ताक पर रखकर ही दरिंदगी की हदें पार की है क्योंकि उन्हें पता है खोखले कानून का सहारा लेकर वे बच जाएंगे।जो पीड़िता पर गुजरती है यह केवल वह और उसका परिवार ही समझ सकता है। 

कानून कड़े हो न हो महिलाओं को यह पूरा अधिकार मिलना चाहिए के अपने ऊपर हो रहे अन्याय का या हो चुके अन्याय का वह उसी क्षण दंड दे सके।

फूलन देवी सभी को याद होंगी जिन्होंने अपने २२ बलात्कारियों को एक लाईन में खड़े कर के गोलियों से भून दिया था। यही हश्र होना चाहिए उन दरिंदों का जब वो अपनी सोच को दरकिनार कर हवस की भूख मिटाने के लिए एक क्षण नहीं सोचते तो पीड़ित महिलाओं को अपनी इज्जत के साथ हुए खिलवाड़ के लिए न्याय पाने के लिए क्यों सालो साल इंतजार करना पड़ता है?तब कहां छुपकर बैठ जाते हैं ये मानाविधिकार वाले जो दरिंदगी करने वालों के बचाव में आकर सड़कों पर चीख पुकार करते हैं??

समय आ गया है अपनी आत्मरक्षक खुद बनने का। अपनी रक्षा करने के लिए किसी पर भी निर्भर न हो। खुद को इतना दृढ कर लें की किसी भी रूप में यदि भकक्षक प्रकट हो तो उसका संहार करने के लिए आप पूरी तरह तैयार हो।जिस तरह बाकी विषय विद्यालय में पढ़ाए जाते हैं उसी तरह आत्म रक्षा और आत्मनिर्भरता का पाठ होना भी अनिवार्य करना चाहिए।जरूरत है इस सोच को आगे बढ़ाने की ताकि समय आने पर महिलाएं इस का उपयोग कर सकें। ये न सिर्फ उन्हें दिशा देंगे बल्कि आत्मविश्वास और आत्मसम्मान भी देगा।वे लड़ेंगी नहीं डरेंगी नहीं।

देश में रेप रोकने के कड़े से कड़े कानून होने चाहिए।और अगर कानून के घर में देर है तो पीड़िता को ये अधिकार पूरा होना चाहिए के वो अपने बचाव के लिए कानून को हाथ में ले सके और उसी क्षण निर्णय ले सकें के उन दरिंदों की क्या सज़ा होनी चाहिए। सज़ा इतनी कठोर हो के अगर कोई ऐसी हरकत करना चाहे तो उनकी रूह कांप जाए उस सज़ा के बारे में सोचकर। वास्तव में प्रशासन और पुलिस कभी कमजोर नहीं होते। कमजोर होती है समस्या से लड़ने की उनकी इच्छा शक्ति। हम सभी जानते हैं और मानते हैं कि रसूखदार लोग जब आरोपों के घेरे में आते हैं तो प्रशासनिक शिथिलताएं उन्हें कटघरे में लाने के बजाय बचाव के गलियारे में से बचा ले जाती है। पु‍लिस की लाठी और कानून सिर्फ बेबस पर बरसती और जुल्म ढाती है रसूखदार के सामने वही लाठी सहारा बन जाती है और कानून आंखों पर पट्टी बांधे बेबस नज़र आती है।

रेप को जघन्य अपराध घोषित करना और बलात्कारी को कड़े दंड देने का प्रावधान होना चाहिए। संवेदनहीन समाज का रवैय्या महिलाओ के प्रति बदले उन्हें अपेक्षित सम्मान मिले रेप पीड़ित महिला को समाज से सहानुभूति और स्वीकार मिले धिक्कार नहीं । पीड़िता को न्याय दिलाने में समाज की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।

बलात्कारी और कुंठित मनोवृत्ति को फांसी दें! स्त्री को जीने दें, उसे खुली हवा में सांस लेने दें, उसे अपनी जिंदगी के सपने पूरे करने दें। उसे बलात्कार पीड़िता की पहचान में न बदलें! उसका संबल बने और सहयोग करें।




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Shalini Narayana

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