ज़िम्मेदार हमारे मुल्क के रोज़ आश्वासन देते हैं टीवी के ज़रिए,
इलाज के नाम पर ये है बस कि, घर से ना निकलिये,
हालात बद से बदतर हो, चाहे हो जैसे,
ला इलाज बीमारी को जान पाने के भी लग रहे हैं पैसे,
पेपरों में कहते हैं कि नहीं आने देंगे हम किसी पर कोई आंच,
पर ज़मीनी हकीकत ये है कि नहीं हो पा रही इनसे एक निशुल्क जांच,
किसी के आवाज़ उठाने या बोलने पर तो बहोत सख़्त तंबीह है,
पर फ़िक्र की बात ये है कि हर अस्पताल में लाइन काफ़ी लंबी है,
उंगली उठा के फायदा क्या, और बुरी या इसकी ज़िम्मेदार नहीं है सिर्फ़ कोई एक सरकार,
अर्से की ख़ामोशी ने बस सिस्टम को ही कर दिया है लाचार,
ज़रूरी तो नहीं जब खुद हो परेशान या हो जाओ बीमार,
तोड़ दो पहले ही ये चुप्पी और एकजुट होकर रुकवा दो ये अत्याचार,
" वरना ख़ुदा के घर भी होना पड़ेगा शर्मसार "
( निभा लेना फ़िरक़ापरस्ती जब हालात अच्छे हों,
अभी निभा लो वतनपरस्ती अगर इंसान सच्चे हो )
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Corona ka bhrastachar
Nice write up. A burning question
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