कतरा कतरा जहर पिला रही है
मुझको भी जिन्दगी तु शिव बना रही है
हंसना मुस्कराना चाहता है दिल म़िरा
तु है कि हरपल जुल्म ढा रही है |
जागती आंखों में पले स्वप्न अनगिनत
गवाह हैं ये चांद - तारे और मेरी छत
पूरे करने की मन में ललक छा रही है
तु है कि जिन्दगी बडा़ इतरा रही है |
मेरे हौंसलो की तु परीक्षा न ले अब
तेरी मुश्किलों से मुझे डरना नहीं अब
उम्मीदों की किरण मुस्करा रही है
तु है कि जिंदगी भाव खा रही है |
खुला आसमान मेरे इन्तजार में बैठा
भरूं ऊंची उडा़न दिल मुझसे कहता
मेरे पंखो में इक शक्ति सी आ रही है
छूना है आसमां मुझको बतला रही है |
कोशिशें जो करे वो सिकन्दर बनेगा
ना हारेगा ना अपने पथ से डिगेगा
आहिस्ता आहिस्ता समझा रही है
जिन्दगी सबक मुझको सिखा रही है |
-सीमा शर्मा "सृजिता"
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