ऐ पुरूषों न इतना आतंक मचाओ
मासूम कलियों की गर्दन यूं ना दबाओ
जीना चाहती हैं वो हक भी है उनका
मौत की नींद इस कदर न सुलाओ
जलाना है तो अन्दर के राक्षस को जलाओ
इन प्यारी गुडियों को यूं न जलाओ
घर से बाहर जब भी निकलो तुम
मां, बहन, बेटी, पत्नी इन्हें देख जाओ
ऐ पुरूष इस कदर तबाही न मचाओ
बहुत हो चुका अब मान भी जाओ
कहीं ऐसा न हो जाये, प्रकृति पर
मानव जाति ही विलुप्त हो जाये
हम औरतें तुम्हें जन्म देने से इंकार कर दे
अपनी कोख का ही बहिष्कार कर दें |
@सीमा शर्मा " सृजिता"
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