बडी़ चुभती हैं समाज की नजर में
चलती है जब मनचाही डगर में
आसमां को चुनती है, जैसे चिड़िया
हिम्मतवाली वो बेबाक सी लड़कियां |
नहीं मांगना चाहती वो इजाजत
समाज के सामन्तों और मालिकों से
जिन्हें किसी ने नहीं दिया मालिकाना हक
जो समझते हैं उन पर अपना प्रभुत्व
नहीं करना चाहती वो हरगिज़ इबादत
पिट कर, बेइज्जत होकर गालियां खाकर
जो चाहते हैं पूजे जायें, ईश्वर कहे जाये
बिन अपराध के सजा झेलती जायें
वो चुनती है अपने लिए खुला आसमान
सर्वोपरि होता है उनका आत्मसम्मान
ना डरती है, ना झुकती हैं वो लड़कियां
खुलकर मुस्काती बेबाक लड़कियां
अपने सपने पूरे करने का जज्बा रखती है
अकेली ही सही मगर मंजिल तय करती हैं
आंसुओं को छोड़ बेखौफ खिलखिलाती है
साहस और शक्ति को पहचान बनाती है
कभी - लज्जाहीन और बेशर्म भी कहाती हैं
पुरूष की पहुंच से जब बाहर हो जाती है
झुंझलाता है ,चिल्लाता है, इल्ज़ाम लगाता है
मगर उससे ना घबराती वो बेबाक लड़कियां |
सीमा शर्मा सृजिता
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