"कायर नहीं हो तुम, बहादुर है मेरी बेटी, याद नहीं मौहल्ले में बचपन में कोई हाथ भी लगा देता था तो कैसे उसके हाथ पैर तोड़ कर आ जाया करती थी |आज कहां गई तुम्हारी निडरता और निर्भीकता |बेचारी बनकर आ गई हो हमारे सामने, जबाब नहीं दिया गया तुमसे |जो हाथ तुम्हारी बिना गलती के तुम पर उठा वो तोडा़ नहीं गया तुमसे |" निरूपा जी रोती हुई संजना से चिल्लाकर कहती हैं |संजना की शादी को अभी 6 महीने ही हुये हैं |दहेज के लालची ससुराल वाले उसे किसी न किसी चीज को मायके से ले आने के लिए दबाब बनाते रहते हैं और मना करती है तो हाथ छोड़ देते हैं |कई बार सहन करने के बाद जब आज उसकी सहनशक्ति टूट गई तो चली आई रोती हुई अपने मम्मी पापा के पास और बता दी अपने ससुराल की सच्चाई |बडे़ अरमानों से अपनी औकात से ज्यादा धन दौलत खर्च कर अच्छे परिवार में शादी की थी संजना की मगर बाहर चमचमाती रोशनी के पीछे इतना गहन अंधेरा होगा, कभी सोचा नहीं था निरूपा जी और महेश जी ने |
"ये क्या सिखा रही हो बहुरिया लड़की को, ससुराल वालों के साथ बराबरी करेगी, मुंहतोड़ जबाब देगी |हर घर में होता है ऐसा नई उमर में अक्सर तहश में लड़के छोड़ जाते हैं हाथ, फिर पति है वो इसका इतना अधिकार तो बनता है उसका |लड़की को समझा बुझाकर ससुराल भेजने की बजाय तु तो उसे भड़काने में लगी है |दिमाग खराब हो गया है तेरा |लड़कियों को परिवार की शान्ति के लिए झुकना ही पड़ता है यही होता आया है सदियों से क्या तुने नहीं किया या मैंने नहीं किया | उसी घर में रहना है इसे महेश जा समझा बुझा कर छोड़ आ और कह दे लड़की से इतनी छोटी -2 बातों पर मायके ना आया करे थोडा़ सहन करना सीखे |"दादी के मुंह से निकला एक एक शब्द संजना के दिल को तार तार कर रहा था और उसकी आंखों से अविरल धारा बह रही थी |
क्यों मां अभी पिछले हफ्ते जब विमल मौहल्ले के कुछ लड़कों से पिटकर आ गया था वो भी बिना गलती के तो आप उसे खाये जा रही थी, आपकी नाक कट रही थी |आपके खानदान में कोई लड़का ऐसे चुपचाप पिट कर नहीं आया कहीं पीट भले ही आया हो |आप उसे कायर कह रही थी |न जाने कितनी बातें सुना रही थी |विमल और संजना दोनों ही हमारे बच्चे हैं तो दोनों में इतना भेदभाव क्यों |संजना क्यों पिटकर आयेगी |संजना क्यों झुकेगी |अगर संजना कुछ गलत कर रही है तो उसके सास ससुर और पति को पूरा अधिकार है उसे डांटकर सही रास्ते पर लाना लेकिन संजना ने तो कुछ किया नहीं फिर उनकी बेबुनियाद मांगें ना पूरी करने के लिए वो क्यों मार खाये |जैसा आप मेरे बेटे को कायर न बनने की सीख दे रही थी उसी तरह मेरी बेटी को भी दीजिए |अबला नारी की तरह बन्द कमरे में आँसू बहाने की नहीं |" महेश जी ने अपनी मां से कहा तो वो चुपचाप करम पर हाथ रखकर बैठ गई फिर महेश जी ने संजना का हाथ पकड़ा और बोले -
" चलो संजना मेरे साथ उन लोगों के नाम पुलिस कंप्लेन करनी है |कोई जरूरत नहीं है ऐसे लालची लोगों के साथ रहने की और ये रिश्ता ढोने की अगर वो तुम्हे दिल से नहीं अपना पाये |"
"नहीं पापा अभी नहीं ,अभी मैं जा रही हूँ अपने घर अगर जरूरत पडी़ तो आपको कॉल करूंगी |आप दोनों जैसे मां बाप अगर हर बेटी को मिलें तो कोई भी लड़की दहेज की बलि न चढे़ और नाहीं घुट घुट कर जीये |सच कहा मां आपने आपकी बेटी कायर नहीं है अपने ऊपर उठने वाले हर हाथ को मरोड़ने का जज्बा रखती है |"
संजना ने अपना बैग उठाया और चल दी ससुराल अबला नारी नहीं एक शेरनी का तरह |
निरूपा जी और महेश जी की समझदारी और प्रोत्साहन ने संजना को हिम्मत दी और गहरे समन्दर में डूब रही अपनी बेटी को तैरने के गुण सिखा दिये और विश्वास भी दिलाया कि उसके माता पिता हमेशा उसके साथ हैं उन्होनें अपनी बेटी को विदा किया है अलविदा नहीं |
नई सोच के साथ मेरी नई कहानी...... उम्मीद है आपको पसन्द आयेगी |
धन्यवाद |
सीमा शर्मा "सृजिता "
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