उस दिन मैं जीत जाऊंगी ....
डॉक्टर ,इंजीनियर या
बडा़ ऑफिसर
बनाऊंगी इक दिन
ऐसा कोई स्वप्न नहीं संजोया
किसी का दर्द समझ जाओ
उसके लिए मरहम बन जाओ
अमीर - गरीब में भेद न करो
सबके हमदर्द बन जाओ
कोई बुजुर्ग मुस्कराकर
रख दे तुम्हारे सर पर हाथ
तुम्हारे अच्छे कर्मों को देख
वो आशीर्वाद बन जाओ
किसी की बेटी महसूस करे
महफूज है वो ,तुम्हारे साये में
हर गली -मौहल्ले गांव -शहर में
हर बेटी के लिए वो छांव बन जाओ
बडे़ हो केवल मर्द होने से
अहंकार न छु पाये कभी
अस्तित्व को तुम्हारे ,
मर्द होने से पहले इंसान बन जाओ
दुनिया बराबर है सबके लिए
मन में प्रेम की भावना लिए
खुशियां बाटों, बिखराओ मुस्कराहटें
ऐसा तुम बागवां बन जाओ
बो तो दिया बीज तुम्हारे अन्दर
सींच भी रही हूं संभल - संभलकर
बन जाओगे तुम वृक्ष इक दिन
आयेगें जिस पर फल - फूल
मानवता के ,उदारता और प्रेम के
उस दिन मैं जीत जाऊंगी
उस दिन मैं जीत जाऊंगी ....
-सीमा शर्मा "सृजिता"
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