पूजा सुबह से ही इन्तजार कर रही थी, आज पड़ोस में रहने वाले मास्टर जी जो शहर में पढ़ाने जाते थे उसका एडमीशन फॉर्म जो लाने वाले थे| बारहवीं में गांव में सबसे ज्यादा नम्बरों से पास होने वाली पूजा के बडे़-बड़े सपने थे| शहर जाकर पढ़ाई करेगी, बहुत बडी़ डॉ. बनेगी और गांव में एक अस्पताल खोलेगी| छोटी सी उम्र में ही बहुत बड़े सपने देख लिये थे उसने और उसका कारण था गांव में कोई भी डॉ. न होने की वजह से उसकी मां की मौत|
छठी कक्षा में पढ़ती थी पूजा जब उसकी मां पेट से थी| रात भर प्रसव पीढा़ झेलती और दर्द से चीखती मां की आंखे आज तक उसके कानों में सुनाई पड़ती हैं| बाबा तो इन्तजार में थे सुबह हो तब शहर जायेगें गांव में तो कोई डॉ. था नहीं वरना बुला लाते कोई साधन भी नहीं था जिससे मां को शहर अस्पताल ले जाते| सुबह के इन्तजार में बैठे रहे और जब सुबह हुई तो घर में दर्द से निकलने वाली चीखे बन्द हो गई हमेशा के लिए| गांव में रहने वाली दाई ने पूजा के भाई को तो बचा लिया लेकिन मां को ना बचा सकीं|खामोश लेटी मां को देख पूजा चीख चीख कर कह रही थी "उठ जा मां, देख तेरे बिना मेरा क्या होगा| कौन मेरे लिए खाना बनायेगा? कौन सुबह स्कूल जाते समय मेरी चोटी बनायेगा, गलती करने पर कौन डंडी लेकर पीछे भागेगा? मां तेरे जैसा लाड़ कौन लादायेगा और मुझे लाडो कहकर कौन बुलायेगा मां?"
पूजा चीखती रही लेकिन मां नहीं उठी क्योंकि मां हमेशा के लिए सो गई थी पूजा और उसके नन्हे भाई को अकेला छोड़कर चली गई थी| पूजा इतना तो समझ गई थी कि गांव में डॉ. ना होने की वजह से ही उसकी माँ की मौत हुई थी | अगर गांव में कोई अस्पताल या कोई डॉ. होता तो मां बच जाती| तभी से उसने अपने आपको वादा किया कि वो डॉ. बनेगी और गांव में अस्पताल भी खोलेगी|
मास्टर जी फार्म लेकर आ गये और पूजा के हाथ में देकर चले गए| दादी ने पूछा तो पूजा ने बता दिया कि उसे पढ़ने के लिए शहर जाना है इसलिए फार्म मँगवाया है| पूजा की बात सुनकर दादी ने पूजा के बाबा से कहा, " छोरी ने हमसे बिना पूछे फारम मंगा लियो है अब शहर जानो है जाकू पढ़ने कह रही है डॉ. बनेगी| हम तो ना भेजेगें भैया शहर को माहौल कितनो खराब है ये तो तोकू मालूम ही है लड़का देख जाके लिए और कछु ऊंच नीच होवे वासे पहले जाको ब्याह कर दे फिर अपनी ससुराल जाकर ही कर लेगी डॉक्टरी फॉक्टरी| "
दादी की बात सुनकर पूजा की आंखों से टपटप आंसू बहने लगे| पूजा के बाबा रमेश ने पूजा के हाथ में से फार्म ले लिया और बोले, " बिटिया मां सही कह रही है शहर का माहौल बहुत खराब है और हमारा कोई जान पहचान वाला भी नहीं रहता वहां कहां रहेगी कैसे पढेगी| गांव में बारहवीं के बाद स्कूल होता तो मैं तुझे पढने से नहीं रोकता बिटिया लेकिन मैं शहर ना भेज पाउंगा| "
रमेश फार्म लौटाने के लिए मास्टर जी के घर की तरफ बढ़ने लगा तो पूजा ने रोक लिया और बोली, " बाबा ये सिर्फ एक फार्म नहीं मेरा सपना है, मेरा वो सपना जो मां के जाने के बाद देखा मैंने| मेरा ये सपना बस मेरे लिए नहीं है बाबा हमारे पूरे गांव के लिए है| जिस तरह गांव में डॉ. न होने की वजह से हमने अपनी मां को खो दिया वैसे कोई भी बच्चा अपनी मां को नहीं खोयेगा| मैं खुद भी डॉ. बनूगीं और अपने भाई को भी बनाउंगी और इस गांव में एक अस्पताल भी खोलूगी जिससे कभी किसी व्यक्ति की मौत इलाज की कमी के कारण नहीं होगी| मुझे मेरा सपना पूरा करने में मदद कर दो बाबा और इस फार्म पर साइन कर दो| ये फार्म वो पंख है जिससे उडा़न भरकर मैं अपना सपना पूरा कर सकती हूँ और पूरे गांव का भला कर सकती हूँ| मुझे ये पंख देदो बाबा और उड़ जाने दो अपने सपने को पूरा करने के लिए इस खुले आसमान में प्लीज बाबा|"
अपनी छोटी सी बेटी के इतने बड़े सपने सुनकर और उसकी खुले गगन में उड़ने की इच्छा देखकर रमेश ने साइन कर दिये और कहा, " मुझे तो पता ही नहीं था मेरी बिटिया इतनी बडी़ और समझदार हो गई है इतने बड़े सपने भी देखने लगी है| तु फिकर ना कर बिटिया तेरा बाबा तेरे साथ है वो खुद तो ज्यादा पढा़ लिखा नहीं है लेकिन अपनी बिटिया को जरूर पढायेगा उसके सारे सपने पूरे करवायेगा| "
बाबा के मुख से हां सुनकर पूजा उछलती कूदती किसी छोटी बच्ची की तरह चहकती हुई अपने बाबा से लिपट गई और खुली आँखों से अपने सपने को पूरा होते हुए देखने लगी|
दोस्तों आज के समय में भी इलाज के लिए गांव के लोगों को शहर भागना पड़ता है| कितना अच्छा हो हर गांव में एक अस्पताल हो| मन्दिर हो न हो, लेकिन अस्पताल हर एक गांव में बनाना चाहिए जिससे ज़रूरतमंद लोगों को सही समय पर सही इलाज मिल सके|
मेरी नई कहानी, उम्मीद है आपको पसन्द आयेगी|
धन्यवाद
सीमा शर्मा पाठक "सृजिता"
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