स्वप्न पलते रहे पलकों में अनगिनत
प्यासी निगाहें रस्ता रही हैं तक
कभी मुडेंर पर तो कभी बरगद के नीचे
अक्सर बैठी रहती हूं इन नैनों को मींचे
तेरी जुदाई सहना मुश्किल कैसे मैं बतलाऊं
कभी मुसकाऊं ,कभी गांऊ, कभी आंसू बहाऊं
भई दीवानी इश्क में बोलें सब बाबरिया
हद हुई इन्तजार की अब आजा ओ साँवरिया
सखी सहेली बडी़ लजावत करती अट्टहास
इक परदेशी की चाहत में भूली भूख -प्यास
आओगे तुम था वादा क्या अब भूल चुके
ये जुदाई ओ परदेशी दिल में पल पल चुभे
चूडी़ ,बिंदिया ,गजरा, जोडा़ करते इन्तजार
बैठी हूं चौखट पर ,संग ले आओ बहार |
प्रेम अगन में जल रही मैं बनकर के मस्तानी
आ जाओ पूरी कर दो अपनी अधूरी कहानी |
@ सीमा शर्मा "सृजिता"
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