तपती चाहें दोपहरी हो
चाहें शीतल शाम
खुश रहे मेरा परिवार सदा
करता हूँ दिनभर काम
कर सकूं पूरी सबकी फरमाइशें
इसलिए दफन करता हूँ
कभी-2 अपनी ही ख्वाहिशे
चेहरे पर हरदम मुस्कान रखता हूँ
मैं पुरूष हूं पुरूषत्व का मान रखता हूँ |
हां दर्द मुझे भी होता है
हां मेरा दिल भी रोता है
जब कभी अपना मेरा
कोई तकलीफ में होता है
आंसुओं को छुपाता हूं
सबका हौंसला बढाता हूं
अन्तर्मन में दर्द में तमाम रखता हूँ
पुरूष हूं पुरूषत्व का मान रखता हूँ |
माना छोडा़ तुमने मेरे लिए संसार
मैंने भी तो सौंप दिया
तुमको अपना घरवार
झुंझलाता हूं, चिढ़ जाता हूँ
कभी -2 थक हार कर
तुम पर गुस्सा हो जाता हूँ
प्यार भी तो तुमसे बेशुमार करता हूँ
पुरूष हूं पुरूषत्व का मान रखता हूँ |
नारी के दुख का सबको आभास
नारी पर लिखे जाते उपन्यास
मैं अछूता ही रहा हमेशा
न समझा कोई मेरे मन की दशा
माना मन की बात नहीं कहता
तुम ही समझ लो बस यही चाहता
हर रिश्ते को हदय से सम्मान देता हूँ
पुरूष हूं पुरूषत्व का मान रखता हूँ |
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