गहन तिमिर के पश्चात हुई है रोशनी
मेरे ही मन मन्दिर में बिखरी है चांदनी
प्रत्यक्ष दिख रही हैं मुझे मेरी शक्तियां
प्रताड़ना सहने के लिए नहीं मैं बस बहुत हुआ
क्रोध की ज्वाला में तुम्हें भस्म कर सकती हूं
उठेगा जो हाथ उसे पल में मरोड़ सकती हूं
कोमल हूं मगर रग रग में मेरे शौर्य भरा
मैंने ही तुमको जन्मा है जीवन भी मुझसे हैं संवरा
तुम मान दो ,सम्मान दो प्रेम का सागर उडे़ल दूंगी
मगर किया अत्याचार या अपमान तो बदला लूंगी
तुम्हारे कड़वे शब्द अब मैं ना सुनुंगी
वदन को घूरती नजरों को इक पल मैं नौंच लूंगी
गर गौरा बनकर रही अब तक तो काली भी बन सकती हूं
उठकर, लड़कर, हर अधिकार छीनकर
मैं इतिहास बदल सकती हूं
मैं इतिहास बदल सकती हूं |
@सीमा शर्मा "सृजिता"
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत बढ़िया
Thank you so much
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