मैं इतिहास बदल सकती हूँ

Motivational poem

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Seema sharma Srijita
Seema sharma Srijita 04 Dec, 2020 | 1 min read



गहन तिमिर के पश्चात हुई है रोशनी 

मेरे ही मन मन्दिर में बिखरी है चांदनी 

प्रत्यक्ष दिख रही हैं मुझे मेरी शक्तियां 

प्रताड़ना सहने के लिए नहीं मैं बस बहुत हुआ 

क्रोध की ज्वाला में तुम्हें भस्म कर सकती हूं 

उठेगा जो हाथ उसे पल में मरोड़ सकती हूं 

कोमल हूं मगर रग रग में मेरे शौर्य भरा 

मैंने ही तुमको जन्मा है जीवन भी मुझसे हैं संवरा 

तुम मान दो ,सम्मान दो प्रेम का सागर उडे़ल दूंगी 

मगर किया अत्याचार या अपमान तो बदला लूंगी 

तुम्हारे कड़वे शब्द अब मैं ना सुनुंगी 

वदन को घूरती नजरों को इक पल मैं नौंच लूंगी 

गर गौरा बनकर रही अब तक तो काली भी बन सकती हूं 

उठकर, लड़कर, हर अधिकार छीनकर 

मैं इतिहास बदल सकती हूं 

मैं इतिहास बदल सकती हूं |

@सीमा शर्मा "सृजिता"

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