इश्क की राहों में चलकर क्यों कर बैठे बैर सनम |
कहते थे अपना हमें फिर क्यों कर बैठे गैर सनम ||
जाना था जब साथ हमको मंजिल थी जब एक ही
छोड़कर मंझधार में क्यों पार गये तुम तैर सनम ||
इश्क की कर ली इबादत मानकर तुमको खुदा |
नहीं पता था इश्क हमारा तुम समझे थे सैर सनम ||
भूल गये तुम जब भी सुनी आने की हमने खबर |
कैसे दीवाने पागल से होकर भागे नंगे पैर सनम ||
डूब गये जब तेरी मौहब्बत के समन्दर में हम
बच न सकेगें 'सृजिता 'अब न हमारी खैर सनम ||
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