लिखती हूं मैं अक्सर प्रेम को
क्योकिं प्रेम सिर्फ किया नहीं है मैंने
बल्कि बसाया है अपनी रूह के कतरे कतरे में
रक्त की तरह बहता है मेरी धमनियों में
रहता है श्वांस श्वांस मेरी धड़कनों में
प्रेम को महज जाना नहीं है मैंने
पूजा है खुदा से बढ़कर
प्रेम को सिर्फ महसूस ही नहीं किया मैंने
जिया है हर लम्हा हर पल खूबसूरत बनाकर
प्रेम ही तो जगत का सार है
खुशनुमा जहान की हर बहार है
कभी करके देखना महसूस सच्चे प्रेम का एहसास
खत्म हो जायेगी जिन्दगी की हर तलाश |
-सीमा शर्मा "सृजिता"
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