चेहरे पर रखकर नकाब मुस्कराना पड़ता है |
भीड़ भरी दुनिया से हाले दिल छुपाना पड़ता है ||
कौन समझेगा दास्तान -ए-जिन्दगी को यहां |
इसलिए आंखों में अपना गम छुपाना पड़ता है ||
तूफान भी टकरा जायें तो खामोश होते लब मिरे|
कह दी गर मन की बात हंस जमाना पड़ता है ||
अपने ही गिरा देते हैं अपनों पर ही बिजलियां |
चोट खाकर भी यहां खुद संभल जाना पड़ता है ||
टूटते हैं ,छूटते हैं और रूठते है ख्याब कभी |
आशाओं की लौ जलाकर फिर मनाना पड़ता है ||
राह में कदम कदम पर कांटे और पत्थर पडे़ |
पानी है मंजिल अगर तो खुद उठाना पड़ता है ||
सच्चाई को सुनने से अक्सर डरते हैं लोग यहां |
ना चाहते हुये भी उनको झूठ सुनाना पड़ता है ||
-सीमा शर्मा "सृजिता"
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