आखिर कौन हुं मैं?

कौन हुं मैं?

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Seema Newatia
Seema Newatia 19 May, 2022 | 1 min read

आखिर कौन हुं मैं?


उठा ये सवाल मन में

ना जाने कितनी बार है

आखिर कौन हुं मैं?

जो नाम से लोग जानते मुझे

क्या वो हुं मैं?


जिन रिश्तों ने मुझे बांधा

क्या वो हुं मैं?

आखिर बोलो ना

कौन हुं मैं?


आईने में जो शख्स दिखता

पर सबको नज़र ना आता

केवल और केवल वो हुं मैं।


बारिश की बुंदों पर

दिल जिसका मचलता

बस वो हुं मैं।


ठहरे हुए पानी पर

बस जोर से छपछप करती

बस वो हुं मैं।


रंगों को देखकर

मन खेलने का करता

बस वो हुं मैं।


कागज़ और क़लम लेकर

कल्पनाओं में बहती जाती

बस वो हुं मैं।


दोस्तों के संग दोस्त

बच्चों के संग बच्ची

बस वो हुं मैं।


पुजारन अपने श्याम की

सजाती और संवारती उसे

बस अपने अंदाज में

बस वो हुं मैं।


कागज़ों पर उतरती कभी

रंगों सी ढलती मैं

बस वो हुं मैं।


ना फिक्र मुझे लोगों की

ना खौंफ किसी बात का

बस वो हुं मैं।


नदी सी कलकल और

चट्टान सी अडिग भी

बस वो हुं मैं।


सुनती मैं खुद की

और करती अपने दिल की

मस्त अपनी दुनिया में

इक खुबसूरत तितली

बस वो हुं मैं।


रिश्ते मेरी जमापूंजी

संभालती दिलों जान से

बस वो हुं मैं

बस और बस वो ही तो हुं मैं।

स्वरचित:- सीमा नेवटिया



कौन हुं मैं?

कौन हुं मैं?


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